Last Updated on July 30, 2022 by Jivansutra

 

Best Tenali Raman Story in Hindi

 

“तेनालीराम जिनका पूरा नाम तेनाली रामकृष्ण था, दक्षिण भारत के विजयनगर राज्य के प्रसिद्ध शासक महाराज कृष्णदेव राय के दरबार के अष्टदिग्गजों में से एक थे। वैसे तो इन्हें मुख्य रूप से एक विकटकवि या विदूषक के रूप में जाना जाता है, लेकिन यह एक कवि भी थे और अपनी कुशाग्र बुद्धि और हास्यबोध के कारण यह कृष्णदेव राय को वैसे ही प्रिय थे जैसे अकबर को बीरबल।”

 

तेनाली रामलिंगचार्युलु का जन्म 16वीं शताब्दी के शुरुआती दशक में थुमुलुरु नामक गाँव में एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में हुआ था। कुछ समय बाद जब इनके पिता की मृत्यु हो गयी तो इनकी माता इन्हें अपने भाई के घर, तेनाली ले आयी जहाँ इनकी किशोरावस्था बीती। तेनालीराम पहले शैव धर्म के अनुयायी थे पर बाद में इन्होने वैष्णव धर्म अपना लिया था।

बचपन में तेनालीराम को कोई विशेष शिक्षा नहीं मिल पायी थी लेकिन अपनी प्रखर जिज्ञासा और परिश्रम के बल पर वह इतने बड़े विद्वान बने। इनके जीवन के कई किस्से मशहूर हैं और हम उनमे से अधिकांश का परिचय आपसे धीरे-धीरे करायेंगे। इन सभी कहानियों से इनकी चतुराई के साथ-साथ इनके व्यक्तित्व की उदारता का भी पता चलता है।

एक बार महाराज कृष्णदेव राय को अपना राज्य फैलाने की इच्छा हुई। विचार करने पर उन्होंने पाया कि इसके लिये उन्हें एक बड़ी और शक्तिशाली सेना की आवश्यकता होगी और सेना को सशक्त बनाने के लिये घोडे भी चाहिये होंगे। मंत्री की सहमति से उन्होंने राज्य के हर निवासी के लिये एक घोड़े की परवरिश करना अनिवार्य कर दिया और साथ ही यह आदेश भी दिया कि सभी घोड़ों को हरे चारे के रूप में बढ़िया खुराक दी जाय।

राज्य की आम जनता को इस फैसले से कोई विशेष परेशानी नहीं हुई, क्योंकि जहाँ वह इतने जानवर पाल रहे थे, वहाँ एक घोड़े को पालने मे भला क्या दिक्कत हो सकती थी। लेकिन तेनालीराम को राजा के इस फरमान पर बडा गुस्सा आया, पर वह बेचारा उसे मानने के सिवा और कर भी क्या सकता था। लेकिन तेज बुद्धि के स्वामी तेनालीराम ने इस मुश्किल का भी एक विचित्र हल खोज ही लिया।

उसने अपने घोड़े को एक कोठरी में बंद कर दिया और हर रोज एक निश्चित समय पर कोठरी में लगी एक छोटी सी खिड़की से घोड़े को बहुत थोड़ी सी घास डाल देता। पर उस जरा सी घास से घोड़े का मोटा और तंदुरुस्त होना तो दूर रहा, अगर उसका पेट भी किसी तरह भर सकता तो भी बहुत बड़ी बात थी। लेकिन घोड़े की ओर से बेपरवाह तेनालीराम का सारा ध्यान सिर्फ अपनी दूध देने वाली गायों पर था जो रोज बढ़िया-बढ़िया चारा खाकर मोटी-ताज़ी हो चली थी।

एक वर्ष पश्चात राजा ने एक दूसरा फरमान जारी किया, जिसके अनुसार हर व्यक्ति को अपने पाले गये घोड़े को राजा के सामने पेश करना था, ताकि पता लगाया जा सके कि आदेश की कितनी तामील हुई। जैसा कि हमारे पाठकगण सोच रहे होंगे, तेनालीराम को छोड़कर बाकी सभी लोग अपने घोड़ों को राजा द्वारा नियुक्त किये गये निरीक्षक के पास ले गये। जब तेनालीराम से अपने घोड़े को न लाने का कारण पूछा गया तो उसने बड़ा विचित्र जवाब दिया।

वह बोला – “क्षमा करें महाराज! लेकिन अब मेरा घोडा इतना ताकतवर हो गया है कि उसे इस दरबार में नहीं लाया जा सकता। तेनालीराम का यह जवाब सुनकर दरबारियों के साथ-साथ राजा भी आश्चर्य में पड़ गये। उसके कथन की सत्यता जानने के लिये राजा ने कहा – “ठीक है! मै कल सुबह उस घोड़े का निरीक्षण करने के लिये तुम्हारे घर मुख्य निरीक्षक को भेजूँगा। तेनाली सहमत हो गये, अगले दिन मुख्य निरीक्षक तेनाली के घर आया।

वह एक लंबी दाढ़ी वाला इंसान था। तेनाली ने जानबूझकर उस निरीक्षक को तब तक इंतजार कराया जब तक कि घोड़े का घास खाने का समय नहीं हो गया। ठीक वक्त पर तेनाली उसे कोठरी में लगी खिड़की के पास ले गया। जब निरीक्षक ने घोड़े को देखने के लिये खिड़की से झाँकने का प्रयास किया तो लंबी होने की वजह से उसकी दाढ़ी ही पहले कोठरी के अन्दर गयी। दाढ़ी को देखते ही घोड़े को अपने चारे का ख्याल आया जो कि उसे हर रोज उसी वक्त दिया जाता था।

उसने दाढ़ी को अपने जबड़ों में भींच लिया और अपनी तरफ खींचा। उसके ऐसा करने से बेचारा निरीक्षक दर्द से चिल्लाया और अपनी दाढ़ी को घोड़े से छुटाने का प्रयास करने लगा। पर घोडा भी अच्छी तरह से जानता था कि पूरे दिन में बस एक ही बार उसे यह थोडा सा चारा मिलेगा इसलिये उसने भी अपने चारे को सुरक्षित रखने के लिये पूरे जोर लगा दिये और यह छीना-झपटी तब तक चलती रही जब तक कि घोड़े को उसका चारा अर्थात निरीक्षक महोदय की दाढ़ी नहीं मिल गयी।

फिर निरीक्षक महोदय वहाँ और न रुक पाये। वह सीधे महाराज कृष्णदेव राय के पास पहुँचे और उन्होंने भी इस बात की पुष्टि कर दी कि निश्चित रूप से तेनालीराम का घोडा ही राज्य के सभी घोड़ों में सबसे ज्यादा ताकतवर है। यह घटना शायद उन उदाहरणों में से एक है कि किस तरह चालाक लोग भी कभी-कभी बुद्धिमानों को मात देने में कामयाब हो जाते हैं।

“बुद्धिमान व्यक्ति एक शब्द सुनते है और दो शब्द समझते है।”
– पवन प्रताप सिंह

 

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