Last Updated on January 4, 2020 by Jivansutra

 

Real Swami Vivekananda Story in Hindi on God Realization

 

“ईश्वर ही ईश्वर की उपलब्थि कर सकता है। सभी जीवंत ईश्वर हैं – इस भाव से सब को देखो। मनुष्य का अध्ययन करो, मनुष्य ही जीवन्त काव्य है। जगत में जितने ईसा या बुद्ध हुए हैं, सभी हमारी ज्योति से ज्योतिष्मान हैं। इस ज्योति को छोड़ देने पर ये सब हमारे लिए और अधिक जीवित नहीं रह सकेंगे, मर जाएंगे। तुम अपने आत्मा के ऊपर स्थिर रहो।”
– स्वामी विवेकानंद

 

God Quotes and Story in Hindi
ईश्वर को सिर्फ अनन्य प्रेम और समर्पण से ही पाया जा सकता है

भारत माता के महान सपूत, संस्कृति के उन्नायक और युगद्रष्टा स्वामी विवेकानंद, पश्चिमी देशों में भारत का दिव्य सन्देश देकर एक लम्बे अंतराल के बाद वापस कलकत्ता लौटे थे। स्वागत-समारोह के पश्चात वे एक दिन दक्षिणेश्वर में माँ काली के दर्शनों हेतु गये हुए थे। माँ के दर्शन करने के बाद वे मंदिर के बाहर बने हुए अहाते में ही विचारमग्न होकर बैठे थे।

तभी मंदिर से बाहर आते हुए एक व्यक्ति ने उन्हें प्रणाम किया और तुरंत ही यह प्रश्न पूछा – ” स्वामीजी, कृपा कर यह बताइये कि भगवान के दर्शन आखिर किस प्रकार हो सकते हैं?” स्वामी जी पहले तो कुछ मुस्कुराये फिर उससे पूछा, “आप कहाँ से आ रहे हैं? उस व्यक्ति ने बताया कि वह मंदिर में भगवान का दर्शन करके आ रहा है।

स्वामी जी ने कहा, “जब मंदिर में भगवान का दर्शन करके ही आ रहे हो, तो फिर यह क्यों पूछते हो कि भगवान के दर्शन कैसे हों? क्या तुमने मंदिर के भीतर माँ भवतारिणी के दर्शन नहीं किये? या तो तुमने ईश्वर के दर्शन ही नहीं किये या फिर तुमने उन्हें केवल पत्थर की मूर्ति समझकर ही निहारा है।” स्वामी जी की ओजपूर्ण वाणी में समाये सत्य को सुनकर वह व्यक्ति हक्का-बक्का रह गया।

कहाँ तो वह यह सोच रहा था कि स्वामी जी उसे भगवान का दर्शन करने की कोई अचूक युक्ति बतायेंगे, और कहाँ स्वामी जी ने उसकी स्वयं की दृष्टि की अपूर्णता और अज्ञानता को प्रकट कर दिया। स्वामीजी ने उसे समझाते हुए कहा, “देखो, प्रत्येक व्यक्ति में भगवान का ही निवास है। प्रत्येक जीवात्मा उस अव्यक्त परब्रह्म का ही स्वरुप है।

प्रकृति पर जय पाते हुए अपने उसी दिव्य स्वरुप का साक्षात्कार करना और उसमें अचल होकर प्रतिष्ठित होना ही इस मनुष्य जीवन का धयेय है। इतना ही क्यों कण-कण में प्रभु ही विद्यमान हैं। इस जड़-चेतन जगत में वे ही अनेकों रूपों में आकर लीला कर रहे हैं। जब तुम्हारा बोध-ज्ञान विकसित होकर इस सत्य को द्रढ़ता से स्वीकार कर लेगा, उसी क्षण तुम्हे सर्वत्र ही ईश्वर के दर्शन, उनकी अनुभूति होने लगेगी।

आगे स्वामी जी ने कहा, “अगर ईश्वर के दर्शनों की वास्तव में इच्छा है तो दीन-दुखियों में, कष्ट से कराहते प्राणियों में उसके दर्शन सुगमता से किये जा सकते हैं। यदि तुम्हारा अंतःकरण किसी के कष्ट, पीड़ा को देखकर द्रवित हो उठे, तो समझना कि तुम ईश्वर की ओर बढ़ चले हो। यह संपूर्ण संसार उस अव्यक्त ईश्वर का ही व्यक्त स्वरुप है।”

“जिस दिन तुम हर प्राणी की यह समझकर सेवा करने लग जाओगे कि मै ईश्वर की ही सेवा कर रहा हूँ, उसी दिन तुम्हे ईश्वर के दर्शन हो जायेंगे। यह हमेशा याद रखना कि ईश्वर जीवन और मृत्यु, सुख और दुःख, उत्थान और पतन, सभी स्थितियों में समान रूप से विद्यमान है। जीव-सेवा ही ईश्वर सेवा है।” स्वामी जी की प्रखर वाणी में समाये आत्यंतिक सत्य को सुनकर उस युवक की जिज्ञासा का समाधान हो गया।

उसने स्वामीजी को प्रणाम करके वहाँ से प्रस्थान किया। जैसी जिज्ञासा उस युवक के मन में थी, वैसी ही जिज्ञासा आज भी अधिकाँश व्यक्तियों के मन में है। और उसका समाधान भी वही है जो स्वामी जी ने बताया है। सेवा-साधना के मार्ग पर चलकर ही हम उस परम दिव्य पुरुष का साक्षात्कार कर सकते हैं जो प्रत्येक जीव में अद्रश्य रूप से विद्यमान है और जिसकी इच्छामात्र से यह संपूर्ण जगत संचालित होता है।

“जो सबका दास होता है, वही उनका सच्चा स्वामी होता है। जिसके प्रेम में ऊँच-नीच का विचार होता है, वह कभी नेता नहीं बन सकता। जिसके प्रेम का कोई अन्त नहीं है, जो ऊँच-नीच सोचने के लिए कभी नहीं रुकता, उसके चरणों में सारा संसार लोट जाता है।”
– स्वामी विवेकानंद

 

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