Last Updated on December 8, 2019 by Jivansutra
Famous Spiritual Story in Hindi
– महर्षि अरविन्द
महान सूफी संत शेख फरीद एक बार एक गांव में ठहरे हुए थे। प्रतिदिन अनेकों लोग उनके दर्शनों के लिए आते और अपनी जिज्ञासा का समाधान कराते। एक दिन एक आदमी ने उनसे एक सवाल किया, “शेख साहब! हमने सुना है कि जब ईसा मसीह को सूली दी जा रही थी, तो उनके चेहरे पर खुशी का नूर चमक रहा था, उन्हें सूली पर लटकाए जाने का जरा भी गम न था। यहाँ तक कि उन्होंने खुद पर जुल्म करने वाले शैतानो पर भी खुदा से रहम करने की अपील की थी।
उस शख्स ने आगे कहा, “हे खुदाबन्द फरीद! हमने यह भी सुना है कि जब मंसूर के हाथ-पैर काटे गए, उनकी आँखे निकलवा दी गईं, तो उसने आह तक न की और सब गमो-सितम हँसते-हँसते सहन कर लिया। क्या ऐसा भी कभी संभव हो सकता है कि जिस इंसान पर इतना जुल्म किया जाय वो आह तक न करे? मुझे तो इन सब बातों पर जरा भी यकीन नहीं होता।
शेख फरीद ने उसके सवालों को चुपचाप सुन लिया और अपने पास रखे एक कच्चे नारियल को उसे देते हुए कहा कि जरा इसे फोड़ो। उस व्यक्ति ने सोचा कि शेख शायद सवाल का जवाब नहीं दे पा रहें हैं, इसलिए वे उसका ध्यान दूसरी तरफ मोड़ना चाह रहे हैं। लेकिन वह आदमी भी पूरा हठधर्मी था। वह बोला, “शेख साहब आपने मेरे सवाल का जवाब नहीं दिया”
संत फरीद ने कहा, “पहले इस नारियल को तो फोड़ो, लेकिन ध्यान रखना कि नारियल की गरी पूरी तरह से अलग हो जाए।” यह कैसे हो सकता हैं शेख साहब! वह व्यक्ति बोला, “यह नारियल तो कच्चा है। इसकी गरी और खोल दोनों आपस में मजबूती से जुड़े हुए हैं। इसलिए गरी को खोल से अलग करके कैसे बाहर निकाला जा सकता है?”
तब फरीद साहब ने एक सूखा नारियल हाथ में लिया और उस व्यक्ति को देते हुए कहा, “ठीक है तो अब इसे फोड़कर इसकी गरी को बाहर निकालो।” तब उस व्यक्ति ने नारियल फोड़कर उसकी गरी बाहर निकालकर रख दी। शेख फरीद ने उससे सवाल किया- “तो अब तुम यह बताओं कि इसकी गरी कैसे बाहर निकल आई?”
उस आदमी ने जवाब दिया, “यह सूखी थी इसलिए खोल से अलग थी, इसी कारण यह बाहर निकल आई।” शेख फरीद ने कहा, “तुम्हारे सवाल का भी यही जवाब है। आम लोगों का शरीर खोल से जुडा होता है। इसलिए जब उनके शरीर को चोट पहुँचती हैं तो उनकी अंतरात्मा को भी चोट पहुँचती है, लेकिन ईसा और मंसूर जैसे पहुँचे हुए खुदा के बन्दे अपने शरीर को खोल से अलग रखते हैं।
इसी वजह से बेइन्तहां जुल्म करने पर भी उन्हें न तो दर्द हुआ और न ही उसका कुछ रंज हुआ।” लेकिन ऐसा लगता है कि तुम अभी ठीक तरह से पके नहीं हो। इसी वजह से तुम्हारे मन में यह ख्याल आया कि आखिर उन पर इतने जुल्मो-सितम का कोई असर क्यों नहीं हुआ? दुनियादारी में रचे-पचे लोगों का अंतरात्मा इतना कमज़ोर हो जाता है कि वे जरा सा भी दुःख बर्दाश्त नहीं कर सकते।
अपने आप को अहं की चाहरदीवारी से मुक्त करने का प्रयास करो, फिर तुम भी उनके जैसे ही निर्लिप्त बन सकोगे और दुनिया के सारे गम मिलकर भी तुम पर कोई असर न डाल सकेंगे।
– अरविन्द सिंह
Comments: आशा है यह कहानी आपको पसंद आयी होगी। कृपया अपने बहुमूल्य सुझाव देकर हमें यह बताने का कष्ट करें कि जीवनसूत्र को और भी ज्यादा बेहतर कैसे बनाया जा सकता है? आपके सुझाव इस वेबसाईट को और भी अधिक उद्देश्यपूर्ण और सफल बनाने में सहायक होंगे। एक उज्जवल भविष्य और सुखमय जीवन की शुभकामनाओं के साथ!