Last Updated on July 10, 2021 by Jivansutra

 

Real Animal Story in Hindi for Motivation

 

“आपकी महानता आपकी विनम्रता और दयालुता से आँकी जाती है। एक अच्छे व्यक्ति के जीवन का सबसे शानदार हिस्सा है: प्यार और दयालुता के छोटे, अनाम और गुमनामी के गर्त में खोये हुए कार्य।”
– विलियम वर्ड्सवर्थ

 

Real Animal Story in Hindi for Motivation

यह घटना बंगाल के प्रसिद्ध साहित्यकार श्री चंद्रशेखर सेन के जीवन से सम्बंधित है। उनके पास स्पैनियल जाति का एक जापानी कुत्ता था, जिसका नाम मिका था। सन 1899 में उन्हें एक महत्वपूर्ण कार्य से बिहार के मुंगेर जिले जाना पड़ा। अपने साथ-साथ वे मिका को भी ले गए। मिका देखने में जितना सुन्दर था उतना ही कोमल उसका स्वभाव भी था। उसका मुख्य भोजन रोटी और माँस था।

एक दिन कुछ लोगों ने देखा कि जो भोजन मिका को खाने के लिए दिया गया था, उसमे से वह कुछ भोजन मुंह में लेकर कई बार थोडा-थोडा करके कहीं पर रख आया, और बचा हुआ भोजन खुद खाने लगा। दूसरे दिन भी उसने ऐसा ही किया। पता लगाने पर मालूम हुआ कि पास ही एक देशी नस्ल का कुत्ता टांग टूट जाने के कारण लंगड़ा हुआ पड़ा है।

भोजन के लिए इधर-उधर घूमने की हिम्मत उसमे न थी। इसके अलावा उस कुत्ते की आयु भी मिका की अपेक्षा ज्यादा थी। मिका इस बूढ़े और लंगड़े कुत्ते पर दया करके प्रतिदिन अपने भोजन में से कुछ भाग ले जाकर उसे दे आता था और उसके पेट की भूख शांत करता था तथा अपने आप आधे भोजन में ही संतुष्ट रहता था।

दस-बारह दिन बाद टांग सही प्रकार से ठीक हो जाने पर जब वह कुत्ता कहीं चला गया, तो मिका ने भी उसे रोटी-मांस पहुँचाना बंद कर दिया। पर क्या सभी मनुष्य इतनी ही उदारता से उन लोगों के लिये कुछ कर पायेंगे जो उस श्वान की ही तरह असमर्थ हो चले हैं? शायद नहीं! खैर उस घटना के कुछ समय बाद सेन महाशय  फैजाबाद चले गए।

मिका वहां दो वर्ष तक जीवित रहा। वे कहते थे, किसी व्यक्ति ने एक दिन उसे न जाने क्या खिला दिया, उसी दिन से वह बीमार रहने लगा और सन 1903 में मर गया। पर जाते-जाते वह अपने उदार और शांत व्यवहार के मधुर कृत्यों को पीछे छोड़ गया। उस देशी कुत्ते ने मिका के उपकार को याद करके किस प्रकार उसके प्रति कृतज्ञता जताई थी, यह हम लोग नहीं जान सकते।

किन्तु मिका उसे दूसरी जाति का समझ घृणा न करके, जो उसकी विपत्ति का सहारा हुआ था, अपने भोजन का एक अंश देकर जो उस निःसहाय को मौत के मुंह से बचाया था, भूख से मरते हुए को दिन पर दिन आहार देकर और आप थोडा ही खाकर संतुष्ट रहता था, इससे वह अनेक स्वार्थी मनुष्यों को शिक्षा दे सकेगा, इसमें संदेह नहीं। कुत्ता होने से ही क्या कुछ बिगड़ जाता है? उसकी उदारता और दयालुता के आगे मनुष्यों को भी मस्तक झुकाना पड़ेगा।

(साभार: हिंदी पुस्तक एजेंसी)

“कोमलता और दयालुता कमजोरी और हताशा की निशानी नहीं है, बल्कि शक्ति और संकल्प का प्रतीक है।”
– खलील जिब्रान

 

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