Last Updated on September 25, 2023 by Jivansutra
Best Ramayana Story in Hindi
– जूलियन बांड
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के शासनकाल को न केवल भारतीय राजव्यवस्था में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है, बल्कि संपूर्ण संसार में खोजने पर भी ऐसे अनुपम न्यायी शासक का कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। उस समय न्याय न केवल सर्वसुलभ और त्वरित था, बल्कि यह पूर्ण भी होता था। न केवल मुनष्य, बल्कि मनुष्येत्तर प्राणी (पशु-पक्षी) तक महाराज श्रीराम से पूर्ण अधिकार से न्याय मांग सकते थे।
उनके समय में न्याय की मर्यादा इतनी कठोर थी कि भगवान् ने स्वयं की खुशियों और प्राणों से भी अधिक प्रिय परिजनों को भी न्याय की वेदी पर अर्पित कर दिया था। सनातन न्याय की महान मर्यादा और गौरव को अक्षुण्ण रखने वाले और उसके लिये दुष्कर त्याग करने वाले भगवान श्रीराम को इतिहास का सर्वश्रेष्ठ न्यायी राजा माना जाता है।
उनके शासनकाल में घटी इस अदभुत घटना के माध्यम से हमें भी इस तथ्य का पता चलता है कि क्यों महान महात्मा गाँधी अपने देश में रामराज्य लाने के इतने घोर समर्थक थे। पिता के वचनों का मान रखते हुए, चौदह वर्ष का वनवास पूरा करने के पश्चात, भगवान श्रीराम अयोध्या के राजसिंहासन पर आरूढ़ हुए। उनके शासनकाल में धर्म और न्याय की दुहाई फिर गयी।
उनके राज्य में न कोई चोर था न दरिद्र। न कोई भूखा था, न कोई दुखी। सभी लोग सुख-संतोष से जीवन बिताते थे। उस समय दंड दुर्लभ था, क्योंकि कोई भी अपराध नहीं करता था। महाराज श्रीराम का राजकर्मचारियों को स्पष्ट आदेश था कि कोई भी व्यक्ति, जिस किसी भी समय न्याय माँगने के लिये आये, उन्हें अविलंब सूचित किया जाय।
सर्वत्र सुख-शांति का साम्राज्य था भगवान् श्रीराम के शासनकाल में। एक दिन महाराज श्रीराम राजदरबार में बैठे थे। संध्या तक भी किसी फरियादी के न आने के कारण अब सभा विसर्जित होने ही वाली थी कि अचानक भगवान् को एक दुखी प्राणी की चीत्कार सुनाई दी। महाराज श्रीराम ने अपने भ्राता श्रीलक्ष्मण से कहा, “लक्ष्मण! जरा बाहर जाकर तो देखो, कहीं कोई प्राणी न्यायप्राप्ति की इच्छा से न आया हो।”
प्रभु की आज्ञा सुनकर श्रीलक्ष्मण राजदरबार से बाहर आये तो उन्हें एक श्वान (कुत्ता) दिखाई दिया, जो बार-बार राजदरबार के अन्दर जाने का प्रयास कर रहा था, लेकिन पहरेदार उसे भीतर नहीं जाने दे रहे थे। लक्ष्मणजी ने पहरेदारों से उस श्वान को अन्दर आने देने को कहा। राजदरबार में पहुँचने पर महाराज श्रीराम ने उससे दुखी होने और चिल्लाने का कारण पूछा।
वह कुत्ता जो सही से खड़ा भी नहीं हो पा रहा था बोला, “महाराज मै आपही की प्रजा हूँ। एक दुष्ट ब्राह्मण ने मुझ निर्दोष को अकारण ही दंड दिया है और प्रहार करके मेरी एक टांग तोड़ दी है। आप सत्यनिष्ठ और धर्मपरायण हैं इसलिये कृपा करके मुझे भी न्याय दीजिये।” महाराज श्रीराम ने उसी समय श्वान की टांग तोड़ने वाले उस ब्राह्मण को बुलवाया।
आगे पढिये इस कहानी का अगला भाग Hindi Story on Weird Punishment: स्वार्थी होने का दंड
– जे. एम. कोएत्जी
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