Last Updated on July 20, 2020 by Jivansutra
Real Hindi Story on Positive Attitude
– विलियम वार्ड
बरसों पुरानी बात है। यह घटना उस समय की है जब गायत्री के अनन्य उपासक और महान सिद्ध संत, पूज्य पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी मथुरा में निवास करते थे। प्रतिदिन अनेकों व्यक्ति उनके दिव्य मार्गदर्शन में अपनी समस्याओं के समाधान खोजने आते और वापस प्रफुल्लित होकर लौटते। एक दिन ब्रज क्षेत्र के एक प्रख्यात व्यवसायी उनके पास अपनी समस्या लेकर आये।
बेचारे बहुत निराश और बेचैन थे। न जाने किस तरह इन्कम टैक्स वालों को उनकी वास्तविक संपत्ति के बारे में पता लग गया और उन पर भारी जुर्माना ठोक दिया। इस जुर्माने में उनकी संपत्ति के एक बड़े हिस्से का जाना निश्चित था। जुर्माने की रकम उस समय लाखों में बैठती थी और इसकी चिंता ने उनके दिन-रात का चैन छीन लिया था।
स्वास्थ्य तेजी से गिरने लगा और घर का वातावरण बोझिल होता चला गया। सेठजी को अब अपना जीवन ही निरर्थक लगने लगा था और वे दिनों-दिन निराशा के काले अंधेरों में डूबते चले जा रहे थे कि इसी बीच उनके किसी शुभचिन्तक ने उन्हें एक बार पूज्य आचार्यजी से मिलने की सलाह दी। वैसे तो वे साधू-महात्माओं के चक्कर में उलझना उचित न समझते थे।
पर आज ‘मरता क्या न करता’ की हालत ने उन्हें मजबूर कर दिया और निरुपाय हो उन्होंने एक दिन आचार्यजी से मिलने का निश्चय कर ही लिया।आज अपनी भीषण समस्या के समाधान हेतु वे गायत्री तपोभूमि में बैठे थे, जहाँ उस समय आचार्यजी निवास करते थे। सेठ जी बाहर बैठे हुए विचारों की उधेड़-बुन में पड़े हुए थे कि आचार्य जी ने एक कार्यकर्ता को भेजकर तुरंत ही उन्हें बुलवा लिया।
सेठजी ने भीतर जाकर पूज्य आचार्य जी को प्रणाम किया और शांत भाव से बैठ गये। चुप रहने पर भी उनके मन की बेचैनी, अतीन्द्रिय क्षमता संपन्न सिद्धयोगी से न छुप सकी। सेठजी को देखते ही वे उनकी समस्या के विषय में जान गये। कुशल-क्षेम के उपरान्त उन्होंने सेठजी से बड़ी आत्मीयता से उनके पारिवारिक और व्यवसायिक जीवन के बारे में पूछा।
उनके प्रेमपूर्ण मधुर व्यवहार से द्रवित होकर सेठजी रुंधे गले से बोल उठे, “महाराज, मुझे बर्बाद होने से बचा लीजिये, मै हर तरफ से निराश होकर आपके पास आया हूँ।” आचार्य जी ने उन्हें अभयदान देते हुए विस्तार से उनकी समस्या पूछी। सेठजी ने अपनी सारी समस्या उन्हें ज्यों की त्यों सुना दी। फिर आचार्यजी ने उनसे उनकी संपूर्ण संपत्ति, जुर्माने और देनदारियों का योग करने को कहा।
काफी समय तक हिसाब-किताब लगाने के पश्चात सेठजी ने बताया कि संपूर्ण संपत्ति की कीमत 50 लाख रूपये बैठती है। फिर आचार्य जी ने उनसे जुर्माने के 20 लाख और सभी देनदारियों का व्यय घटाने को कहा। वैसे तो इन सभी खर्चों में सेठजी की बहुत बड़ी संपत्ति जा रही थी, पर इसके पश्चात भी सेठ जी के पास दस लाख रूपये बचे हुए थे जो कि तब भी बहुत ज्यादा थे।
पूज्य आचार्यजी ने कहा, “देखिये सेठजी, बीस लाख रूपये जुर्माने के, और बीस लाख रूपये बाकी सभी देनदारियों के देने के पश्चात भी आपके पास दस लाख रूपये बच जाते हैं और जहाँ तक मेरा ख्याल है इतने पैसों से केवल आपका ही नहीं, बल्कि आपकी आने वाली तीन पीढ़ियों का भी गुजारा चल सकता है।
आगे पढिये इस कहानी का अगला भाग Hindi Story on Life: नजरिया बदलकर अपनी जिंदगी बदलिये
– महात्मा बुद्ध
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