Last Updated on May 1, 2020 by Jivansutra

 

Patriotic Casabianca Story in Hindi

 

“इस संसार में वही बुद्धिमान है जो जीवन और मरण के रहस्य को जानता है, भय और आसक्ति से रहित होकर जीवन जीता है और उच्च आदर्शों के आधार पर अपनी गतिविधियों का निर्धारण करता है।”
– पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य

 

Patriotic Casabianca Story in Hindi
जीवन किसी के साहस के अनुपात में फैलता और सिकुड़ता है

यह कहानी नेपोलियन युग की एक सत्य घटना पर आधारित है। नेपोलियन के बारे में तो खैर सभी जानते ही हैं; उसे दुनिया के सबसे ज्यादा साहसी तानाशाहों में शामिल किया जाता है। पर यहाँ हम नेपोलियन की कोई चर्चा नहीं करेंगे, बल्कि हमारा उद्देश्य उस अनुपम आत्मत्याग के उदाहरण को सबके सामने प्रस्तुत करना है, जो उस आयु में एक दुर्लभ घटना मानी जाती है जिसमे त्याग और आदर्श के बजाय चंचलता और आमोद-प्रमोद ही प्रधान है।

यह घटना 18वीं सदी के अंतिम दशक की है। फ्रांस की अपने राज्य को विस्तार देने की महत्वाकांक्षा ने, उस समय सारे यूरोप में उथल-पुथल मचा रखी थी। कई देशों को परास्त करने के बाद, उसने अपना हमला ब्रिटेन पर बोला। सन 1798 में इंग्लैंड और फ्रांस के बीच लड़ा गया, नील नदी का युद्ध, इन दोनों देशों के बीच लडे गये अगले कई युद्धों में एक विशिष्ट स्थान रखता है।

इस युद्ध के बाद ब्रिटिश नौसेना का परचम विश्व भर में फ़ैल गया था। फ्रांस के हमले के जवाब में ब्रिटेन ने भी पूरी शक्ति से उसका सामना किया। युद्ध में फ्रांसीसी जहाज के कमांडर थे – लुईस डी कैसाबिअंका (Louis de Casabianca), जो अपने 12-13 वर्ष के बेटे जियोकांट (Giocante) के साथ जहाज पर तैनात थे और फ्रांसीसी सेना का नेतृत्व कर रहे थे। युद्ध अपनी चरम स्थिति पर था।

समुद्र के तट पर, दोनों देशों की नौसेनाओं के जंगी जहाजों के बीच जबरदस्त युद्ध चल रहा था। शुरुआत में बहादुर फ्रांसीसी सैनिकों ने अंग्रेजों को पीछे लौटने को मजबूर कर दिया, पर बाद में अंग्रेज़ सैनिकों की एक नयी टुकड़ी के आ जाने से फ्रांसीसी सेना घिर गयी। लम्बे समय तक युद्ध चलने के बाद सभी फ्रांसीसी सैनिक मारे गए, जिनमे जहाज के कमांडर कैसाबिंचा भी शामिल थे।

युद्ध पर जाने से पहले, कमांडर ने अपने बेटे जियोकांट, यानी Young Casabinca को उनके न आने तक जहाज नहीं छोड़ने का आदेश दिया था। छोटा कैसाबिअंका एक आज्ञाकारी और बहादुर बच्चा था। उसने पिता को वचन दिया कि जब तक वह नहीं आयेंगे, तब तक वह जहाज नहीं छोड़ेगा। युद्ध में उसके पिता मारे गए, पर इसका उसे पता नहीं चल पाया।

फिर अंग्रेजों ने फ्रांसीसी जहाज को नष्ट करने के लिये अंधाधुंध गोलीबारी चालू कर दी, ताकि बचे खुचे लोग भी मारे जाएँ। लेकिन सभी सैनिक तो पहले ही मारे जा चुके थे, अब बस केवल Young Casabianca ही जहाज पर अकेला बचा हुआ था। जहाज पर आग लग चुकी थी और धीरे-धीरे सारे जहाज पर फैलती जा रही थी।

जब आग फैलते-फैलते जियोकांट के पास पहुँच गयी, तो उसने जोरों से चिल्लाकर कहा- “पिताजी, जहाज में आग लग गयी है, क्या मै अब जा सकता हूँ?” जब कोई जवाब न मिला और आग जहाज के डेक तक पहुँच गयी, जहाँ वह खड़ा हुआ था, तो वह पुनः चिल्लाया – “पिताजी आप कहाँ हैं? क्या मेरा काम समाप्त हो गया है?” लेकिन फिर से कोई जवाब नहीं आया।

क्योंकि अब कोई जीवित ही कहाँ बचा था, जो उसकी आवाज़ के उत्तर में बोलता।  शायद अब वह भी कुछ-कुछ समझ रहा था कि उसके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे। पर विश्वास की एक मद्धिम रौशनी अब भी उसके जेहन में बची हुई थी। आखिरी बार उस बहादुर बालक ने धीमी आवाज़ में, कांपते होंठों से अपनी पूरी शक्ति से फिर एक आवाज़ लगाई, जो शायद तोपों की गडगडाहट में ही दबकर रह गयी थी।

“पिताजी कृपया जवाब दीजिये, क्या मै अब भी जहाज पर रुकूँ?”  और फिर इतने में अंग्रेज सेना की ओर से एक गोला आकर जहाज पर फटा और जहाज के साथ-साथ बहादुर छोटा कैसाबिअंका भी समुन्दर की अनंत गहराइयों में समा गया; पर अपने विमल यश और कीर्ति की अमिट गाथा को सारे संसार में फैलाकर। जिस उम्र में बच्चे केवल खेल-कूद और मनोरंजन में व्यस्त रहते हैं, उस अवस्था में उसने वचनबद्धता, सत्यनिष्ठा और कर्तव्यपरायणता को प्रमाण दिया।

यह सब जानने के बावजूद कि अंग्रेजों ने सभी फ्रांसीसियों को मार दिया है, सारे जहाज पर आग लगी हुई है और अब वे जहाज को उड़ाने ही वाले हैं, वह देशभक्त और आज्ञाकारी बालक बिल्कुल न डरा और अविचल रहकर कर्तव्य की बलिवेदी पर चढ़ गया।  वह युद्ध तो बीत गया, सैनिक भी मारे गये, पर उस वीर बालक के त्याग ने उसे सारे संसार में अमर कर दिया।

“साहस सभी सद्गुणों में सबसे बढ़कर है, क्योंकि यदि आपमें साहस नहीं है, तो आपको दूसरे किसी भी सद्गुण का उपयोग करने का अवसर नहीं मिल सकेगा।”
– सैमउल जॉनसन

 

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