Last Updated on May 23, 2022 by Jivansutra
New Motivational Story in Hindi on Government
– जॉर्ज वाशिंगटन
सूफी संतों में एक बड़े प्रसिद्ध संत हुए हैं हज़रत उमर, जिनका नाम आज भी मुस्लिम औलियों में बड़े आदर से लिया जाता है। यह घटना उस समय की है, जब वह बग़दाद के खलीफा हुआ करते थे। उन्होंने अपने राज्य के समस्त कर्मचारियों और सरदारों को सख्त हिदायतें दे रखी थीं कि जब भी कोई प्रजा अपनी फरियाद लेकर आये, तो उसका काम तुरंत ही कर दिया जाये।
एक दिन इशरत नामक एक मंत्री के घर पर एक आदमी शुक्रवार के दिन आधी रात को आया। जब उसने दरवाज़ा खटखटाया, तो मंत्री ने घर के अन्दर से ही कह दिया कि इतनी रात को वह बाहर आने में मजबूर है। मंत्री ने उससे इस बात के लिए माफी मांगी और प्रार्थना की कि वह दूसरे दिन किसी भी समय आ जाय।
उस आदमी ने अगले दिन हज़रत उमर से मंत्री की शिकायत कर दी। खलीफा ने जब यह सुना, तो वे बड़े क्रुद्ध हुए। उन्होंने उसी वक्त इशरत से जवाब-तलब किया। मंत्री ने नम्रता से जवाब दिया, “हुजूर, अल्लाह गवाह है कि आज तक मैंने किसी भी व्यक्ति को मना नहीं किया था, मगर कल जुम्मे का दिन होने और अपनी मजबूरी की वजह से मुझे उसे वापस लौटाना पड़ा।”
“जरा हमें भी तो पता चले, आखिरकार क्या मजबूरी थी तुम्हारी, जिसकी वजह से हमारी प्रजा को कष्ट उठाना पड़ा?” – खलीफा उमर ने कहा। “मेरी मजबूरी को मुझ तक ही सीमित रहने दीजिये। अगर बताऊंगा, तो मेरी जिंदगी का एक ऐसा राज खुल जाएगा, जिसे मै किसी को बताना नहीं चाहता।” – इशरत ने जवाब दिया। खलीफा ने कहा – “तुम एक जिम्मेदार मंत्री हो और रिआया का ख्याल तुम्हे रखना ही चाहिए।
रियासत के किसी भी मुलाजिम का राज, राज नहीं रहना चाहिये, उसे बयां करना ही चाहिये।” खलीफा के बहुत जोर देने पर, मंत्री इशरत ने कहा- “हुजूर! हफ्ते के छह दिन मै काम में बड़ा मशरूफ रहता हूँ। केवल जुम्मे की रात को थोडा सा वक्त निकाल पाता हूँ। मेरे पास कपड़ों का केवल एक ही जोड़ा है और उसे मै जुम्मे की रात धोता हूँ।
उस हालत में मै कैसे बाहर आ सकता हूँ? फिर इबादत भी करनी होती है, उसके लिए भी समय नहीं मिलता। मेरे उस समय काम न करने की वजह यही थी और यही मेरा ‘राज’ है।” हज़रत उमर ने जब यह सुना, तो वे गदगद हो गये और उनकी आँखों से आँसू बह निकले। उन्होंने खुदा का शुक्रिया अदा किया कि उनकी रियासत में ऐसे भी मंत्री मौजूद हैं, जो अपनी जिम्मेदारी बखूबी समझते हैं।
न तो वे जनता के प्रति गाफिल हैं और न ही खुदा को भूलते हैं। यहाँ तक कि सरकारी खजाने से एक पैसा तक लेना गुनाह समझते हैं। सच्चा लोकसेवक तो वास्तव में वही है, जो स्वयं को जनता का सेवक समझकर हर समय उसकी सेवा करने के लिए तैयार रहता है। सभी शासकों को यह याद रखना चाहिये कि जिस सल्तनत में प्रजा के सुख-दुःख से कोई मतलब नहीं होता, वह विनाश के कगार पर खड़ी रहती है।
भ्रष्टाचार और पाखंड के लिए लोकतंत्र में कोई जगह नहीं होनी चाहिये, जैसे कि आज है। वास्तव में सत्ता अपने आपमें भ्रष्ट नहीं होती है। इसे खोने के डर और कभी पूरी न हो सकने वाली लोभ की आग की वजह से ही भ्रष्टाचार पनपता है और सत्ता के चाबुक के डर से जनता भ्रष्टाचार को गले लगा लेती है।
– अरविन्द सिंह
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