Last Updated on April 19, 2020 by Jivansutra
Moral Story in Hindi on Respect
– अरविन्द सिंह
यह घटना सन 1861-1865 के मध्य की है। उस समय अमेरिका में दास प्रथा को लेकर गृहयुद्ध छिडा हुआ था और अमेरिका के सबसे महान और लोकप्रिय राष्ट्रपतियों में से एक अब्राहम लिंकन, उस समय देश के राष्ट्रपति थे। देश के आधे से अधिक राज्य, इस बर्बर प्रथा को समाप्त कराना चाहते थे, लेकिन कई राज्य इसके पक्ष में भी थे। दासप्रथा-समर्थक सेना का नेतृत्व, सेना के प्रधान अध्यक्ष वर्जिनिया राज्य के जनरल ली कर रहे थे।
राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन दासप्रथा को मनुष्य जाति के लिए कलंक मानते थे। वे इस गलत प्रथा को हर हाल में समाप्त कराना चाहते थे, लेकिन युद्ध छिडने पर जनरल ली ने विद्रोह कर दिया और दूसरे पक्ष की सेना का नेतृत्व किया। ऐसे गंभीर समय पर, लिंकन ने विद्रोह को दबाने की जिम्मेदारी जनरल ग्रांट को सौपीं। प्रारंभ के दो युद्ध में हार जाने पर अमेरिकी संसद ने राष्ट्रपति लिंकन पर ग्रांट को हटाने का दबाव बनाया था।
लेकिन लिंकन ने जनरल ग्रांट को हटाने से साफ मना कर दिया और उन्ही के नेतृत्व में लड़ने पर विश्वास जताया। आखिरकार जनरल ली इस युद्ध में हार गए और उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया। संधि की शर्तें तय करने और उन पर हस्ताक्षर कराने के लिए दासप्रथा-विरोधी दल की ओर से जनरल ग्रांट, ली के पास गए।
गृहयुद्ध से पहले ग्रांट, जनरल ली के मातहत काम कर चुके थे और युद्ध में सेना के लड़ने के तौर-तरीकों की विशेष शिक्षा-दीक्षा भी उन्होंने, ली से ही सीखी थी। अपने गुरु समान ली को पराजित और मानभंग की इस शोचनीय अवस्था में देखकर जनरल ग्रांट को बड़ा कष्ट हुआ। इस घटना के बारे में उन्होंने लिखा था –
“I felt anything rather than rejoicing at the downfall of a foe who had fought so long and valiantly”
“ऐसे दुश्मन के गिर जाने पर, जो इतने लम्बे समय तक इतनी बहादुरी से लड़ा हो, मुझे चाहे कुछ भी हुआ हो, लेकिन ख़ुशी नहीं हुई।”
जैसे कि युद्ध का नियम होता है कि हारे हुए दुश्मन के अस्त्र-शस्त्र और संपत्ति छीन ली जाती है, वैसा काम ग्रांट ने नहीं किया। ली के केवल एक बार कहने पर ही जनरल ग्रांट ने अफसरों के व्यक्तिगत हथियार और घोड़े उन्ही के पास रहने दिए। जब ली ने जनरल ग्रांट को यह बताया कि उनके पास खाने तक की सामग्री ख़त्म हो गयी है और उनके 25000 सैनिक भूखे हैं, तो जनरल ग्रांट ने तुरंत उनके लिए उचित व्यवस्था करा दी।
ली के हार जाने पर, जब गृह मंत्री का यह सन्देश आया कि ‘जनरल ली के आत्मसमर्पण की खुशी में तुरंत 1000 तोपों की सलामी छोड़ी जाय’, तो ग्रांट ने लिखा कि “जनरल ली जैसे वीर पुरुष को बार-बार यह याद दिलाना कि तुम हार गए हो, किसी भी द्रष्टि से उचित नहीं है। इस विजय के उपलक्ष में तोपें न छोड़ी जायँ, नहीं तो ली से ज्यादा कष्ट मेरी आत्मा को पहुंचेगा।”
सभी ने जनरल ग्रांट के इस अनुरोध को सराहा और उनकी प्रार्थना पर तोपें नहीं छोड़ी गयीं। हम जीतने के लिए अवश्य पैदा हुए है, लेकिन दूसरों की मान-मर्यादा की कीमत पर नहीं। दूसरों को सम्मान देना एक प्रशंसनीय गुण है, लेकिन अपने शत्रुओं और विरोधियों का सम्मान करना एक दिव्य सद्गुण है, जो किन्ही विरले मनुष्यों में ही मिलता है।
वह व्यक्ति वास्तव में महान है, जो दूसरों को बड़ा मानता है और उनका यथोचित सम्मान करता है। सच्चे वीर पुरुष कभी भी मर्यादा का अतिक्रमण नहीं करते, अपने शत्रुओं के साथ भी नहीं।
– पियरे डी. कुबर्टिन
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