Last Updated on January 9, 2019 by Jivansutra

 

Inspiring Maharana Pratap Story in Hindi

 

“महाराणा प्रताप की गिनती उन शूरवीरों में होती हैं जिन्होंने अपने पराक्रम से भारत का मस्तक ऊँचा रखा हुआ है। वह न सिर्फ राजपूत समाज का गौरव हैं, बल्कि चारित्रिक द्रढ़ता, शौर्य, प्रचंड संकल्प और प्रतिबद्धता का ज्वलंत प्रतीक भी हैं।”

 

महान राजपूत नरेश महाराणा प्रताप की इस प्रेरक स्टोरी में आज हम आपको उनके जीवन की दो प्रेरक कहानियों के माध्यम से इस महान शूरवीर के उद्दात चरित्र के बारे में बतायेंगे। उनके बारे में विस्तार से जानने के लिये आप महाराणा प्रताप की जीवन गाथा को पढ़ सकते हैं। पर यहाँ हमारा उद्देश्य आपको उनके जीवन के महत्वपूर्ण तथ्यों से परिचित कराना नहीं, बल्कि उनके त्याग भरे आदर्श को दिखाना है।

 

Maharana Pratap and Maan Singh Story in Hindi

 

यह कहानी उस वक्त की है जब वह कमलमीर में प्रवास कर रहे थे। एक दिन उन्हें अकबर के नवरत्नों में से एक, राजा मानसिंह के आने की सूचना मिली जो शोलापुर के युद्ध में जीतकर राजधानी लौट रहा था। रास्ते में उसने सोचा क्यों न महाराणा से भी मिल लिया जाय, इसीलिये उसने एक दूत भेजकर महाराणा प्रताप को अपने आने का सन्देश भेजा।

हालाँकि वह मानसिंह से मिलने के बिल्कुल भी इच्छुक नहीं थे, फिर भी उन्होंने शिष्टाचारवश उससे उदयगिरी में मिलने का प्रबंध किया। महाराणा प्रताप ने उससे मिलकर कुशल क्षेम पूछा और भोजन करने के लिये कहा। लेकिन जब भोजन-स्थल पर महाराणा प्रताप की जगह उनका पुत्र अमर सिंह दिखायी दिया तो मानसिंह ने उनके न आने का कारण पूछा।

अमरसिंह ने जवाब दिया – “सिर में दर्द होने के कारण पिताजी नहीं आ सकते हैं, इसीलिये उन्होंने मुझे भेजा है।” अकबर की गुलामी करने के कारण राजा मानसिंह की राजपूत समाज में बड़ी बुराई हो रही थी और इसे वह भी अच्छी तरह से जानता था, इसीलिये उसने अमरसिंह की बात तुरंत ताड़ ली।

अपने अपमान से क्रोधित होकर वह बोला – “मै इस मस्तक-शूल को अच्छी तरह जानता हूँ, मगर अच्छी तरह समझ लो, अब इसकी कोई दवाई नहीं है। तभी अन्दर विश्राम कर रहे महाराणा प्रताप ने आवेश भरे शब्दों में जवाब दिया – “तो तुम भी समझ लो मै उस राजपूत के साथ कभी भोजन नहीं कर सकता, जो अपनी बहु-बेटियों का विवाह एक तुर्क से कर सकता है और उसकी दिन-रात गुलामी करता है।

यह सुनते ही मानसिंह खुद को अपमानित मानते हुए बिना भोजन किये ही उठ खड़ा हुआ और बोला – “क्या कहा महाराणा! मै अकबर की गुलामी करता हूँ? अगर आप खुद को इतना बड़ा शूरवीर मानते हैं, तो अब समझ लीजिये कि आपके भी गुलामी करने के दिन आ ही गये। मै इस अपमान का हर हाल में बदला लेकर रहूँगा, यह मेवाड़ अब ज्यादा दिन आपका न रह सकेगा।

यह सुनकर महाराणा प्रताप ने द्रढ़ता से उत्तर दिया – “मानसिंह तुम जो कर सकते हो करो! मुझे तुम्हारी हर चुनौती स्वीकार है। इतना सुनकर मानसिंह क्रोध में फुफकारता हुआ वहाँ से चला गया और महाराणा ने उस भोजन-स्थल को खुदवाकर, भोजन के पात्रों को, भोजन सहित जमीन में गडवा दिया और फिर उस पर गंगाजल छिडकवाया।

इतना ही नहीं जिन-जिन लोगों ने मानसिंह को देखा था या उसके संपर्क में आये थे, उन्होंने भी स्नान करके नये वस्त्र पहने। इसके बाद क्या हुआ यह तो सभी जानते हैं। मानसिंह के उकसाने पर ही अकबर ने मेवाड़ पर आक्रमण किया था, पर महाराणा प्रताप ने सिर झुकाने के बजाय उसकी चुनौती को ह्रदय से स्वीकार किया।

 

Sacrifice of Maharana Pratap Story in Hindi

महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुए कई युद्ध में शुरूआती विजय अकबर को ही मिली, क्योंकि उसके पास बहुत बड़ी सेना थी। धीरे-धीरे महाराणा का मेवाड़ पर से अधिकार जाता रहा। अकबर ने कई बार मानसिंह और दूसरे राजाओं के जरिये उन तक यह प्रस्ताव पहुँचाया कि अगर वह सिर्फ अकबर की अधीनता भर स्वीकार कर लें, तो पूरा मेवाड़ राज्य उन्हें वापस लौटा दिया जायेगा और अकबर उन्हें मित्र समझेगा।

लेकिन स्वतंत्रता को अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानने वाले सच्चे देशप्रेमी महाराणा प्रताप ने हर बार अकबर का यह प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। अब वह महल छोड़कर अरावली की सूखी पहाड़ियों में अपने परिवार के साथ भटक रहे थे, जहाँ न सिर पर छत थी और न खाने को निवाला। लेकिन चट्टान की तरह मजबूत महाराणा प्रताप ने हँसी-खुशी यह जीवन स्वीकार किया।

अमरसिंह को उन्होंने पहले ही अपने कुछ विश्वासपात्र मंत्रियों के संरक्षण में दूर भेज दिया था और अब उनके साथ उनकी पत्नी, पुत्री और कुछ सैनिक ही बच रहे थे। बड़ी मुश्किल से सबका गुजारा चलता था, लेकिन फिर भी उनकी पत्नी और कोमलांगी बेटी के माथे पर शिकन तक न थी और वह हमेशा महाराणा का उत्साह बढ़ाते रहती थीं।

भले ही महाराणा प्रताप युद्ध से विरत हो गये थे और मेवाड़ पर अकबर का कब्ज़ा हो गया था, फिर भी उनकी हर हरकत पर अकबर की पूरी नजर रहती थी। गुप्तचरों के माध्यम से महाराणा प्रताप और उनके परिवार के कष्टमय जीवन की हर खबर उस तक पहुँचती थी। जब उसे पता चला कि महाराणा के पास इस समय भोजन करने तक को अन्न नहीं है और उन्हें कई-कई दिन भूखे रहना पड़ता है तो वह आश्चर्यचकित रह गया।

शानो-शौकत का जीवन जीने वाले अकबर को इस बात पर कतई यकीन नहीं हुआ कि कोई इन्सान अपने आदर्शों और जीवन मूल्यों के लिये इतना दुस्साहसपूर्ण त्याग भी कर सकता है। उसने उनकी हालत खुद चलकर देखने का निश्चय किया। अकबर ने एक चरवाहे के रूप में अपना भेष बदला और गुप्तचरों के बताये रास्ते के अनुसार वहाँ पहुँच गया जहाँ महाराणा प्रताप और उनका परिवार ठहरा हुआ था।

वहाँ का द्रश्य देखकर अकबर की आँखे फटी की फटी रह गयी, क्योंकि जैसा गुप्तचरों ने बताया था, महाराणा उससे कहीं ज्यादा कष्टकारी जीवन जी रहे थे। उसने देखा – कि महारानी ने घास के बीजों को इकठ्ठा करके उनकी रोटी बनायी और जब तीनों प्राणी उन्हें खाने बैठे, तभी अचानक से एक उदबिलाव महाराणा की बेटी के हाथ से रोटी छीनकर भाग गया।

उस जंगली जानवर के अप्रत्याशित प्रहार से राजकुमारी गिर गयी और उसका मस्तक सामने पड़े एक पत्थर में लगा। सिर पर चोट लगने से खून बहने लगा और राजकुमारी रोने लग गयी। उसी वक्त महारानी ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर लड़की के सिर पर बांधा और उसे चुप करने लगी। यह ह्रदय विदारक दृश्य देखकर महाराणा प्रताप की आँखों से आँसू छलक पड़े और वे अपनी नजरें झुकाकर जमीन को देखने लगे।

अकबर थोड़ी ही दूर छुपकर खड़ा-खड़ा यह कष्टकारी दृश्य देख रहा था, लेकिन शायद उसका ह्रदय भी इतना कठोर नहीं था कि वह उन प्राणियों के उस भीषण त्याग और कष्ट को देखकर बिना तडपे रह जाय। महाराणा और उनके परिवार की इस दयनीय हालत में भी, सिद्धांतों के प्रति अपूर्व निष्ठा को देखकर उसकी आँखों से भी आँसू निकल पड़े और वह महाराणा की शूरवीरता और त्याग को नमन करते हुए वापस लौट गया।

शायद महाराणा प्रताप की इस असाधारण जिजीविषा का ही परिणाम था कि कुछ ही वर्षों में उन्होंने मेवाड़ के अधिकांश भू-भाग पर फिर से अधिकार कर लिया और मानसिंह और अकबर को मन मनोसकर ही रह जाना पड़ा।

“धरती पर साहस की सबसे बड़ी परीक्षा बिना निराश होए पराजय सहन करना है।”
– रॉबर्ट ग्रीन इन्गेर्सोल

 

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