Last Updated on October 2, 2018 by Jivansutra

 

Famous Lal Bahadur Shastri Story in Hindi

 

“भारत को लम्बे समय तक सशक्त, स्वतंत्र और आत्म-निर्भर बनाये रखने में जिन लोगों को अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान देना होगा वह हमारे किसान और जवान ही हैं, सिर्फ पूँजीपतियों और चतुर राजनेताओं के बल पर भारत अपना खोया गौरव हासिल नहीं कर पायेगा।”
– लाल बहादुर शास्त्री

 

बालकों की उम्र नादानियाँ और शैतानी करने की ही होती है, अगर बच्चे नादानी न करें तो फिर उन्हें बच्चा कहे ही कौन। संसार को समझने और सीख लेने का यह उनका अपना ही तरीका है। लेकिन समझदार हो चले बड़ी उम्र के लोगों को कौन समझाये कि बालकों के प्रति उग्र और क्रूर व्यवहार न केवल उनके प्रति निर्मम अत्याचार है, बल्कि यह उनके अपने व्यक्तित्व की कमजोरी को भी प्रकट करता है।

तभी तो वह बूढा माली उस छोटे बच्चे को बुरी तरह से पीट रहा था जो आयु में सबसे छोटा होने के कारण बड़ों की फुर्ती और तेजी की बराबरी नहीं कर सकता था और आसानी से उसके हाथ में आ गया था। बात यह थी की छह-सात साल का वह बालक उठती उम्र के कुछ लड़कों के साथ एक बाग़ में आम तोड़ने घुस गया था। जो लड़के पेड़ पर चढ सकते थे, वह आम तोड़-तोड़कर नीचे डालने लगे और बाकी लोग उन्हें चुनकर इकठ्ठा करने लगे।

वह बालक भी उनके पास खड़ा-खड़ा अपनी बारी का इंतजार कर रहा था, पर इससे पहले कि उस बेचारे को कोई फल मिल पाता बच्चों के उधम मचाने की आवाज सुनकर बगीचे का माली वहाँ आ पहुँचा। उसे आते देखकर सब लड़के पेड़ से झटपट कूदकर वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गये, रह गया बेचारा वह बालक जो उन लड़कों की तरह तेज नहीं भाग सकता था।

लड़कों को पकड़ने में असफल रहने पर माली ने अपना सारा गुस्सा उस नन्हे बालक पर उतारा। वह बच्चा रोते-रोते माली से बोला – “आप मुझे इसलिए पीट रहे हैं न, क्योकि मेरे पिता नहीं हैं!” उस बच्चे की यह बात सुनकर माली ने उसे पीटना तो बंद कर दिया पर वह उसे समझाते हुए कहने लगा “यदि तुम्हारे पिता नहीं हैं तब तो तुम्हे और ज्यादा जिम्मेदार बनना चाहिये। जाओ अब से फिर कभी ऐसा गलत काम मत करना।”

माली तो अपनी बात कहकर वहाँ से चलता बना लेकिन उसकी यह बातें उस छोटे बच्चे के दिल में घर कर गयी। आज जब बच्चे तो क्या बड़े भी बार-बार समझाने के बावजूद खुद को बदलने में असहाय पाते हैं, वह बालक उस सीख को पूरे जीवन अपने ह्रदय में धारण किये रहा। उस दिन के बाद उस बालक ने फिर कभी ऐसा काम नहीं किया जो न्याय और मर्यादा के विपरीत हो और जिसके कारण उसे और उसके परिवार को लज्जित होना पड़े।

अपनी सरलता से उस माली को प्रभावित करने वाला यह बालक और कोई नहीं, बल्कि भारत के दूसरे प्रधानमंत्री और प्रखर स्वतंत्रता सेनानी लाल बहादुर शास्त्री थे जो जीवन भर, हर जगह, अपने उदार चरित्र, सादगी और सेवाभावना के कारण सम्मान पाते रहे और जिन्हें आज भी प्रत्येक देशवासी एक सच्चे देशभक्त के रूप में याद करता है।

“जो शासन करते हैं उन्हें यह अवश्य देखना चाहिये कि लोग प्रशासन पर किस तरह अपनी प्रतिक्रिया देते हैं, क्योंकि लोकतंत्र में अंततः जनता ही मुखिया होती है।”
– लाल बहादुर शास्त्री

 

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