Last Updated on September 5, 2024 by Jivansutra

 

Best Inspirational Story in Hindi on Marriage

 

“वह व्यक्ति सुखी है जिसे एक सच्चा दोस्त मिल गया है, पर उससे भी ज्यादा सुखी वह है जिसे वह सच्चा दोस्त अपनी पत्नी में मिला है।”
– फ्रैंज शुबर्ट

 

Inspirational Story in Hindi on Marriage
विवाह में सुख सिर्फ प्रेम व विश्वास की नींव पर टिका है

जिंदगी में वैसे तो सभी रिश्तों की बहुत अहमियत है, चाहे वह माता-पिता व संतान के बीच हो, भाइयों और बहनों के बीच हो, या फिर मित्रता का श्रेष्ठ सम्बन्ध हो। पर इन सभी रिश्तों में एक रिश्ता ऐसा भी है जिसे इन सबसे बढ़कर कहा जा सकता है। इसलिए नहीं कि वह सभी को बहुत ज्यादा प्रिय है, बल्कि इसलिये क्योंकि वह लगभग प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के अधिकतम समय के सुख-दुःख और खुशियों को तय करता है और वह रिश्ता है विवाह, पति-पत्नी का पवित्र सामाजिक सम्बन्ध।

विवाह को ऐसा पवित्र सम्बन्ध माना जाता है जो न केवल परिवार निर्माण की धुरी है, बल्कि उस समाज का स्वरुप भी तय करता है जिसके नागरिक देश की उन्नति और अवनति में मुख्य कारण बनते हैं। असफल वैवाहिक जीवन से न जाने कितने लोग दुखी हैं, न जाने कितने लोगों का जीवन कष्टमय और नारकीय बन गया है, न जाने कितने लोग विवाह के रंगीन सपने देखते-देखते घातक षड्यंत्रों की भेंट चढ़ चुके हैं।

पर यहाँ हमारा उद्देश्य इस पवित्र संस्था का गुण-दोष विवेचन नहीं बल्कि इस प्रेरक कहानी के माध्यम से सफल वैवाहिक जीवन के सबसे महत्वपूर्ण बिंदु को प्रकट करना है। यह घटना मध्यकाल के प्रसिद्द संत कबीरदासजी के जीवन से सम्बंधित है। संत कबीर अपनी पत्नी लोई और पुत्र-पुत्री के साथ काशी नगरी (वाराणसी) में बेहद साधारण जीवन व्यतीत करते थे।

वे व्यवसाय से जुलाहे थे और सूत कातकर जो भी धन मिलता था, घर के सभी प्राणी उसी में हंसी-ख़ुशी गुजर-बसर करते। ईश्वर की उपासना और आजीविका का प्रबंध करने के बाद जो समय बचता उसमे वे सत्संग का आयोजन करते, जिसमे उनके अनेकों शिष्यों के अलावा सभी वर्गों के लोग भी शामिल रहते। एक दिन की बात है, सत्संग समाप्त होने पर बाकी लोग तो चले गये, पर एक युवक वहीँ बैठा रहा।

वह बड़ा बेचैन और दुखी प्रतीत हो रहा था। शायद कोई समस्या रह-रहकर उसे परेशान कर रही थी। इसी का समाधान ढूँढने आज वह यहाँ आया था। एकांत देखकर वह संत कबीर के पास आया और उन्हें प्रणाम करने के पश्चात बोला, “महाराज, मै अपने वैवाहिक जीवन से बड़ा दुखी हूँ। मेरी पत्नी बहुत कर्कश और लड़ाकू स्वभाव की है।

घर में बिलकुल शांति नहीं रहती। अब मुझे संसार में रहने की कोई इच्छा नहीं है। कृपया मुझे सन्यास की दीक्षा देने की कृपा करें, जिससे मै मोक्ष प्राप्तकर सभी दुखों से छुटकारा पा सकूँ। संत कबीर ने एक बार युवक को ध्यान से देखा और फिर दूसरे ही पल अपनी पत्नी लोई को आवाज़ लगाई। जब वें घर से बाहर आयी तो कबीरजी ने उनसे दीपक जलाकर लाने को कहा।

उनकी बात सुनकर उनकी पत्नी बिना कुछ पूछे घर के अन्दर गईं और एक दीपक जलाकर संत कबीरदास के पास रखकर वापस घर के अन्दर चली गयीं।  न तो संत कबीर ने और न ही उनकी पत्नी ने अपने मुख से कुछ कहा, पर वह युवक आश्चर्यचकित हुआ यह सोच रहा था कि आखिर यह हो क्या रहा है! इस भरी दुपहरी में कबीरदासजी आखिर इस दीपक का करेंगे क्या?

उन्हें चुपचाप काम करते देखकर युवक ने सोचा कि शायद संतजी उसके प्रश्न का उत्तर देना भूल गये हैं। इसलिये उसने अपना प्रश्न फिर दोहराया।  संत कबीर ने उसके प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा, “यह दीपक ही तुम्हारे प्रश्न का उत्तर है। तुमने देखा ही होगा कि जब मैंने अपनी पत्नी से दीपक जलाकर लाने को कहा, तो उन्होंने मुझसे दीपक की आवश्यकता के सम्बन्ध में कुछ पूछे बिना ही यह कार्य कर दिया और फिर वापस अपने काम में लग गईं।

ऐसा नहीं है कि उन्हें पता नहीं है कि दिन अभी बचा हुआ है, बल्कि उन्होंने वह करना ज्यादा जरूरी समझा जो मैंने उन्हें कहा था, क्योंकि मेरी प्रसन्नता में ही उनकी ख़ुशी निहित है। उनके ह्रदय में मेरे प्रति मात्र श्रद्धा ही नहीं थी, बल्कि मुझ पर यह विश्वास भी था कि मैंने उनसे जो काम करने को कहा है वह व्यर्थ नहीं है। मैंने भी केवल एक ही बार उन्हें यह काम करने को कहा।

यदि वे नहीं करती तो भी मै उनसे इस काम को दोबारा करने को नहीं कहता। मुझे आशा है अब तुम्हे अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा। युवक आश्चर्यचकित और श्रद्धावनत होकर अपने घर चला गया। शायद अब उसे सुखी वैवाहिक जीवन का रहस्य मालूम हो गया था। जिन्हें अब भी कुछ संशय हो कि आखिर एक सुखमय विवाहित जीवन की क्या मूलभूत आवश्यकता है?

वे यह जान लें कि श्रद्धा, विश्वास और सहनशीलता ये तीन गुण ही सफल वैवाहिक जीवन की नीव हैं। श्रद्धालु होने से व्यक्ति व्यर्थ के तर्क-कुतर्क और अहं से बचता है। विश्वास होने से प्रेम और आत्मीयता में वृद्धि होती है तथा समर्पण की भावना उपजती है। सहनशील बनने से हठ, जिद और उत्पीडन की प्रवृत्ति का विनाश होता है।

यदि हम थोडा गहराई में जाकर इस पवित्र सामाजिक संस्था के नष्ट होने का कारण खोजे, तो यही पायेंगे कि पति-पत्नी के रूप में शपथ लेने वाले इन लोगों के जीवन से ये तीनों दिव्य सदगुण जा चुके हैं।

“अलग-अलग रहते हुए भी एक दिखना, एक-दूसरे में समाए रहने का महाभाव ही प्रेमरूपी पाठशाला की सर्वोच्च महाविद्या है। जो इस महासागर में डूब गया वह फिर लौटकर नहीं आता।”
– संत कबीर

 

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