Last Updated on October 2, 2019 by Jivansutra

 

Funny Story in Hindi on Wisdom of Monkeys

 

“उपकार करने में अकुशल व्यक्ति का उपकार भी सुखदायक नहीं होता। माली के बन्दर की तरह, मूर्ख व्यक्ति काम की हानि ही करता है।”

 

Funny Story in Hindi on Wisdom of Monkeys
बुद्धिमान व्यक्ति दूसरे लोगों की गलतियों से सीखते हैं, पर मूर्ख खुद की गलतियों से।

यह कहानी जातक कथा से ली गयी है। जातक कथाओं में भगवान बुद्ध के पूर्वजन्मों का विवरण है। एक बार भगवान बुद्ध कोशल राज्य में भ्रमण कर रहे थे। एक गरीब की कुटिया पर पहुँचने पर गृहस्वामी ने उन्हें भोजन का निमंत्रण दिया। भोजन के पश्चात भगवान कुटिया के पास वाले बगीचे में टहलने लगे। अचानक उनकी नज़र ऐसे स्थान पर पड़ी, जहाँ न तो कोई पेड़ था और न किसी तरह की घास ही उगी थी।

पूछने पर माली ने बताया कि जब वृक्ष लगाये जा रहे थे, तब एक मूर्ख बालक ने पेड़ों को उखाड़-उखाड़ कर उनकी जड़ें नाप-नाप कर पानी दिया था, जिससे सब पेड़ खत्म हो गए थे। भगवान ने हँसते हुए कहा, “मूर्ख लड़के ने पहली बार ही बाग़ नहीं उजाड़ा है। इसने पूर्वजन्म में भी ऐसा ही किया था।” जिज्ञासा प्रकट करने पर उन्होंने उसके पूर्वजन्म की कथा सुनाई।

काशी के राजा ब्रह्मादत्त के राज्य में एक बार नगर में बड़ा उत्सव हो रहा था। राजा के माली की भी इच्छा हुई कि वह भी नगर में जाकर उत्सव देखे, लेकिन उस पर पेड़ों को पानी देने का उत्तरदायित्व था। माली दुर्लभ और सुन्दर पेड़ों तथा लताओं से भरे बगीचे की रोज देखभाल किया करता था। उसके न रहने पर बगीचे और पेड़-पौधों की देखभाल कौन करेगा, इसका विचार करने पर उसे अपने बन्दर मित्र का ध्यान हो आया।

वह बन्दर बगीचे में रहने वाले बंदरों का सरदार था। किसी तरह एक बार माली की बंदरों के सरदार से दोस्ती हो गयी थी। उसने बंदरों के सरदार के सामने अपनी समस्या रखी और उससे कहा, “मित्र क्या तुम एक दिन के लिए अपने साथियों के साथ मिलकर इस बगीचे को सींच दोगे?”, मै एक जरूरी काम से बाहर जा रहा हूँ। बंदरों के सरदार ने प्रसन्नतापूर्वक यह काम करने का आश्वासन दे दिया।

जब माली चला गया, तो सरदार ने सब बंदरों को बुलाया और समझाया, “देखो दोस्तों, आज हमें एक परोपकार का काम करना है। बड़ी सावधानी और अक्लमंदी से सभी पेड़-पौधों को पानी देना है। कोई पेड़ प्यासा न रहे। जिस पेड़ को जितनी जरुरत हो, उतना ही पानी दिया जाये, लेकिन पानी बर्बाद न किया जाये। वरना पानी की परेशानी खड़ी हो जायेगी।”

बंदरों की समझ में नही आया कि पेड़-पौधों की प्यास कैसे नापी जायेगी? उन्होंने अपने सरदार से पूछा – तब उस बुद्धिमान बन्दर ने उत्तर दिया, “पेड़ जड़ों से पानी पीते हैं। किसी पेड़ की जड़ें छोटी होती हैं, तो किसी की बड़ी। अतः तुम लोग ऐसा करो कि प्रत्येक पौधे और लता को उखाड़कर उनकी जड़ों की गहराई को देख लो। जिसकी जड़ जितनी गहरी हो, उसे उतना ही पानी दो।

सरदार का आदेश पाकर, बन्दर बर्तन ले लेकर सिंचाई करने लगे। अब बन्दर तो बन्दर ही ठहरे। उन्होंने प्रत्येक पौधे को पहले उखाड़ कर उसकी जड़ें नापी और फिर उसे लगाकर उसी अंदाज़ से पानी पिलाया। जल्दी ही उन्होंने सारे छोटे-छोटे पेड़-पौधे और लताएँ उखाड डालीं। इस मेहनत के काम में बन्दर भी बिलकुल थक गए थे, पर उन्हें इस बात का संतोष था कि आज उन्होंने एक अच्छा काम किया है।

दूसरे दिन जब माली लौटकर आया और सारे बगीचे का विनाश देखा, तो सिर पीटकर गहरी सांस छोड़ते हुए कहा कि किसी ने सच ही कहा है, “मूर्ख दोस्त से समझदार दुश्मन ज्यादा अच्छा।” अकुशल और मूर्ख का उपकार भरा काम भी दुःख ही देता है। इस संसार रुपी बगीचे को भी एक अच्छा जीवन जीने लायक स्थान बनाने के लिए, अनगढ़ व्यक्तियों की नहीं, बल्कि श्रेष्ठ चिंतन से युक्त व्यक्तित्व की ही ज्यादा आवश्यकता है।

“जानना, यह जानना है कि आप कुछ नहीं जानते हैं। यही वास्तविक ज्ञान का अर्थ है।”
– अरस्तू

 

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