Last Updated on August 27, 2018 by Jivansutra
Motivational Hindi Story on Fraud and Cheating
– थॉमस कार्लाइल
इस शानदार और प्रेरक कहानी का पिछला भाग आप Guru Nanak Dev Story in Hindi: गुरुनानक और कपटी सूबेदार में पढ़ ही चुके हैं। अब प्रस्तुत है अगला भाग –
मस्जिद में नमाज अदा करने को मजबूर कर इसका धर्म खंडित करा दिया। खैर, नमाज ख़त्म होने के बाद जब दोनों ने देखा कि नानकदेव तो चुपचाप खड़े होकर उन्हें ही देख रहे हैं, तो उन्हें बड़ा गुस्सा आया। सूबेदार आँखे निकालकर बोला, “क्यों रे ढोंगी! तू तो खुद को खुदा का बंदा कहता है। फिर तूने नमाज क्यों नहीं अदा की?
दुनिया के सामने खुदा का नाम लेने का दिखावा करता है, पर नमाज नहीं पढता। तू सच में पाखंडी है। गुरु नानकदेव शांतचित्त रहते हुए ही उनसे बोले, “जनाब, आया तो मै भी नमाज पढने ही था, पर पढता किसके साथ? क्या आप लोगों के साथ? जिनका ध्यान खुदा से हटकर दुनियावी काम धंधों में ही उलझा हुआ था।
सूबेदार साहब, आप ही बताइये क्या आपका मन उस वक्त उस सौदागर से मिलने को बेचैन नहीं था जो घोड़े लेकर आने वाला है? और काजी साहब, क्या आप उस समय यह सोचकर मन ही मन खुश नहीं हो रहे थे कि आपने मुझे मस्जिद में लाकर किला फ़तेह कर लिया है? अब जरा आप लोग खुद ही सोचिये कि वास्तव में असली पाखंडी मैं हूँ या फिर आप?
खुदा की शान में गुस्ताखी आखिर किसने की? मैंने या आपने?” गुरु नानकदेव की यथार्थ और मर्मस्पर्शी बातें सुनकर काजी और सूबेदार शर्म के मारे जमीन में में गड गये। उन्हें विश्वास हो गया कि यह कोई साधारण इंसान नहीं, बल्कि कोई बहुत पहुँचे हुए औलिया है। दोनों ने उनसे माफ़ी माँगी और फिर कभी किसी पर जुल्म न करने का संकल्प लिया।
धर्म की जो विडंबना मध्यकाल के भारत में हुई थी, कमोबेश ऐसी ही या इससे भी अधिक बुरी हालत आज है। छोटी-छोटी बातों पर दंगे होना, धार्मिक सम्प्रदायों के बीच वैमनस्यता फैलना आज बहुत आम है। धर्म के वे ठेकेदार जिन्होंने इसे अपनी बपौती समझ रखा है, शायद ही धर्म के मूल सिद्धांतों के बारे में कुछ जानते हों।
यदि उन्हें धर्म के प्रथम सिद्धांत के विषय में थोड़ी सी भी जानकारी होती, तो शायद ही इन विवादों में किसी निर्दोष प्राणी की हिंसा होती। केवल अपने ही मत की श्रेष्ठता का अभिमान और उसे दूसरों पर बलपूर्वक थोपने की महत्वाकांक्षा ने हमारी आने वाली पीढ़ियों का भविष्य भी अंधकारमय कर दिया है।
जिन्हें शैशव से ही प्रेम, समर्पण और सहिष्णुता की शिक्षा मिलनी चाहिये थी, वे हिंसा, उत्पीडन और मौत के तांडव को देखकर बड़े होते हैं। यदि उनमें दुष्टता के संस्कार अधिक हुए तो वे अपने पूर्ववर्तियों की तुलना में समाज के लिये और भी ज्यादा घातक सिद्ध होते हैं और यदि वे उदासीन और संशयवादी बने तो पलायन के रास्ते पर आगे बढ़ जायेंगे।
धर्म का वास्तविक ज्ञान इनमे से किसी को न हो सकेगा। इसीलिए हमारा कर्तव्य है कि अपनी आने वाली पीढ़ियों को सनातन धर्म के मूल सिद्धांतों से परिचित करायें, न कि संप्रदाय का चोला ओढ़कर विध्वंस मचाने वाली कुरीतियों को उनके निश्चल मन और ह्रदय में प्रविष्ट करायें। केवल तभी इस विश्व में शांति की स्थापना हो सकेगी।
– पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
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