Last Updated on March 23, 2020 by Jivansutra
Real Chhatrapati Shivaji Maharaja Story in Hindi
आज हम आपको छत्रपति के उच्च चरित्र बल के विषय में बताने जा रहे हैं जो उनकी स्त्रियों के प्रति सम्मान की उच्च भावना को दर्शाता है। यह 17वीं शताब्दी में उस समय की बात है जब मुगलों और मराठों में कल्याण के किले पर आधिपत्य ज़माने के लिये भीषण संग्राम छिड़ा हुआ था। अंत में मराठों ने मुगलों को खदेड़कर किले पर अधिकार कर लिया। किले के अन्दर से उन्हें अस्त्र-शस्त्र के अलावा बहुत बड़ी संपत्ति भी हासिल हुई।
इसी बीच जब किलेदार को लगा कि अब किला उसके हाथ से निकल गया है, तो वह अपने परिवार को छोड़कर भाग गया। कुछ सैनिकों ने उसके परिवार की स्त्रियों को मराठा सेनापति के सामने पेश किया। जब सेनापति ने मुगल किलेदार की एक नवयुवती स्त्री को देखा तो वह उसके सौंदर्य से अभिभूत हो गया, क्योंकि वह स्त्री अत्यंत सुन्दर थी। सभी सैनिक भी अवाक् होकर उसे ही देखने लगे।
सेनापति ने उसे एक अमूल्य स्त्री रत्न समझकर महाराज शिवाजी को नजराने के रूप में भेंट करने का निश्चय किया। सैनिकों की टुकड़ी उस सुंदरी को पालकी में बिठाकर राजधानी की ओर चली। जब सेनापति वहाँ पहुँचा तो उस समय शिवाजी अपने मंत्रियों के साथ एक महत्वपूर्ण विषय पर मंत्रणा कर रहे थे। उसने छत्रपति को प्रणाम किया और बोला – “महाराज! कल्याण का किला हमारे अधिकार में आ गया है और वहाँ से बहुत बड़ा खजाना भी प्राप्त हुआ है।”
यह सुनकर शिवाजी ने सेनापति की पीठ थपथपाई, फिर सेनापति ने आगे कहा – “महाराज! हमें वहाँ से एक अनमोल और दुर्लभ रत्न भी प्राप्त हुआ है जिसे देखकर आप अत्यंत प्रसन्न होंगे। इतना कहकर उसने पालकी की तरफ इशारा किया। शिवाजी के मन में हल्की सी जिज्ञासा उठी और वे पालकी की तरफ चल दिये। जैसे ही उन्होंने पालकी का पर्दा हटाया उन्हें उस खूबसूरत मुगल नवयौवना के अप्रतिम सौंदर्य के दर्शन हुए जो किसी अप्सरा के जैसी ही लग रही थी।
उस नवयुवती ने भी उन्हें देखा और सिर झुकाकर प्रणाम किया। महाराज शिवाजी ने उस स्त्री को देखते ही अपना मस्तक नीचे कर लिया और फिर वे विनम्रता से बोले – “काश! मेरी माताजी भी इतनी सुन्दर होती, तो मै भी आज बड़ा खूबसूरत होता।” इतना कहकर शिवाजी सेनापति की ओर मुड़े और उसे डाँटते हुए कहने लगे – “तुम इतने दिन तक मेरे साथ रहे और फिर भी मेरे स्वभाव को न समझ सके।
जाओ अभी इस स्त्री को ससम्मान इसके पति के पास छोड़कर आओ और याद रखना कि भविष्य में दोबारा ऐसा न हो। शिवाजी दूसरे की स्त्रियों को हमेशा अपनी माँ के समान समझता है।” वह सेनापति छत्रपति की बात सुनकर अवाक् रह गया, उसने उनसे क्षमा माँगी और कुछ सैनिकों के साथ पालकी को वापस किलेदार के पास भेज दिया। जब वह सुंदरी मुगल किलेदार के पास पहुँच गयी तब उसने उसे इस घटनाक्रम के बारे में बताया।
किलेदार को अपने दुश्मन शिवाजी से इस प्रकार के व्यवहार की कतई आशा न थी। उसने भी शिवाजी की उच्च चरित्रनिष्ठा को प्रणाम किया। वास्तव में महाराज शिवाजी ने जिस प्रकार की अनासक्ति का उदाहरण पेश किया था वह अत्यंत दुर्लभ है। क्योंकि असाधारण रूपवती युवती को देखकर मन को रोक सकना बड़ा कठिन कार्य है और जब बात शत्रु से प्रतिशोध लेने व उसकी संपत्ति पर अधिकार जमाने की आती है तब वैराग्य और चरित्रबल का इतना ऊँचा उदाहरण प्रस्तुत करना दुष्कर ही है।
– पवन प्रताप सिंह
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