Last Updated on May 22, 2019 by Jivansutra

 

Ashwathama Story in Mahabharata in Hindi

 

“अश्वत्थामा महाभारत के प्रमुख नायकों में से एक है। साहसी, वीर और रणधीर होने के साथ-साथ वह चतुर और ज्ञानी भी है। लेकिन आवेश में उससे हुआ एक गलत कर्म, कैसे एक झटके में उसे मनुष्यता के गौरव से नीचे गिरा देता है, यह आज आप इस प्रेरक कहानी में पढेंगे।”

 

वैसे तो अश्वत्थामा के जीवन से जुडी हुई अनेकों कहानियाँ हैं, लेकिन उनमे से सबसे प्रसिद्ध घटना उसके सिर की मणि छीनने से जुडी है। आज हम आपको उसी कहानी के बारे में बताने जा रहे हैं। यह कहानी कुछ लम्बी है, इसीलिये इसे हमने तीन भागों में बाँटकर दिया है। इस कहानी से आप तीन शिक्षाएँ ग्रहण करेंगे, जो कि इस प्रकार हैं – इन्सान को कभी भी धर्म का मार्ग छोड़कर अन्याय का आश्रय नहीं लेना चाहिये, उसे अपने मित्रों के चुनाव में सावधानी बरतनी चाहिये और कभी भी आवेश में आकर कोई गलत काम नहीं करना चाहिये।

यह घटना उस समय की है, जब भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे योद्धा रणभूमि में धराशायी हो गये थे और महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था। क्योंकि गदा युद्ध में भीम ने दुर्योधन की जांघे तोड़ दी थी और वह अपनी अंतिम साँसे ले रहा था। अश्वत्थामा उसके अपमान और अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिये किसी भी हद तक जाने को तैयार था।

इसीलिये उसने धोखे से पाँचों पांडवों के अलावा, उनके पक्ष के सभी योद्धाओं को रात में मौत के घाट उतार दिया, क्योंकि पांडवों के सामने आकर युद्ध करने की हिम्मत उसमे नहीं थी। यहाँ तक कि कौरवों की ही तरह पांडवों के वंश में भी अब कोई उत्तराधिकारी जिन्दा नहीं बचा था। इस हत्याकांड में पाँचों पांडवों और द्रौपदी के सारे पुत्र मारे गये। बदले की आग में अंधे हुए अश्वत्थामा ने कम आयु के किशोरों को भी जिन्दा नहीं छोड़ा था।

महाभारत में अश्वत्थामा की प्रेरक कहानी

पुत्रों की मौत से, द्रौपदी सहित दूसरी रानियाँ तथा उनकी बहुएँ भी जोर-जोर से विलाप कर रही थी, और उनकी मौत के लिये पांडवों को ताना दे रही थी। दुःख और क्रोध तो पांडवों के मन में भी बहुत था, पर वह किसी तरह से धैर्य धारण किये हुए थे। लेकिन भीम उनका रोना सुनकर रुक नहीं सके और रथ सजाकर अश्वत्थामा को मारने के लिये चल दिये। उन्हें जाते देखकर भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा –

“पार्थ! अब यह समय और सोच-विचार करने का नहीं है। भैया भीम क्रोध में बिना कुछ सोचे-समझे अश्वत्थामा के पीछे चले गये हैं। आचार्य द्रोण ने तुम्हे जिस ब्रह्मास्त्र की शिक्षा दी है, वही दिव्यास्त्र अश्वत्थामा के भी पास है। इसलिये भीम की प्राण-रक्षा करने के लिये तुम्हे भी तुरंत ही प्रस्थान करना चाहिये। अन्यथा कहीं ऐसा न हो जाय कि बदले की आग में अँधा हुआ अश्वत्थामा भीम पर ही उस अमोघ अस्त्र का प्रहार कर दे।”

यह सुनकर चारों भाई और भगवान कृष्ण एक रथ पर चढ़कर भीम के पीछे-पीछे चल दिये। इधर भीम तेजी से अश्वत्थामा के रथ के पहियों के निशान का पीछा करते-करते उसके नजदीक पहुँचते जा रहे थे। काफी दूर जाने पर भीम को अश्वत्थामा का खाली रथ दिखायी दिया। जब उन्होंने अपने चारों ओर नजरें दौड़ाई, तो अश्वत्थामा, उन्हें व्यास, नारद, कृपाचार्य और दूसरे ऋषियों-मुनियों के पास बैठा दिखायी दिया।

उसे देखते ही उन्होंने फटकारते हुए हाँक लगायी – “अरे दुष्ट अश्वत्थामा! रात्रि में नींद में सोये हुए वीरों को मारकर तू अपने आप को योद्धा समझता है। ले आज मै तुझे उनके ही पास पहुँचा देता हूँ।” यह कहकर भीम क्रोध में दांत पीसते हुए रथ से कूद पड़े और गदा लेकर अश्वत्थामा की तरफ लपके। उन्हें अपनी ओर आता देखकर अश्वत्थामा डर गया और अपनी जान बचाने तथा भीम को मारने के लिये उसने उन पर ब्रह्मास्त्र छोड़ने का विचार किया।

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