Last Updated on November 2, 2019 by Jivansutra

 

Famous Androcles and The Lion Story in Hindi

 

“कृतज्ञता प्राप्त हुई दया की आंतरिक भावना है। कृतज्ञता उस भावना को व्यक्त करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति है और कृतज्ञ होना उस प्रेरणा का अगला चरण।”
– हेनरी वान डाइक

 

Androcles and The Lion Story in Hindi
कृतज्ञता ह्रदय की स्मृति है

यह घटना यूँ तो बहुत पुरानी और प्रसिद्ध है, लेकिन कृतज्ञता के सर्वश्रेष्ठ उदाहरणों में से एक है। बहुत समय पहले की बात है उत्तरी अफ्रीका में एक व्यक्ति के पास एंड्रूकुलिस नाम का एक गुलाम था, जिसे उसने काफी पैसे देकर एक सौदागर से ख़रीदा था। यूँ तो एंड्रूकुलिस ध्यान से हर काम करता था, लेकिन कभी-कभी भूल हो जाने पर उसका मालिक उसे बुरी तरह पीटता था। एक बार ऐसे ही भूल हो जाने पर वह मार से बचने के लिए जंगल में भाग गया।

जिन्हें पता न हो कि गुलाम किन्हें कहते हैं, वे जान ले कि ये ग़ुलाम सामान्य नौकरों की तरह नहीं होते थे, बल्कि इन्हें बाज़ार में जबरदस्ती ख़रीदा और बेचा जाता था। इन गुलामों से मनमाफिक और हर तरह का काम लिया जाता था। न तो इन्हें कोई तनख्वाह दी जाती थी, न कोई छुटटी और न ही भरपेट भोजन। बीमार होने पर न तो सही से दवा दी ज़ाती थी और न ही आराम करने दिया जाता था।

कोई छोटी सी गलती हो जाने पर भी इन्हें बहुत बुरी तरह कोड़ों से पीटा जाता था, जिससे कभी-कभी इनकी मौत भी हो जाती थी। न इनका कोई परिवार था और न ही कोई साथी। ये समझिये कि इनका जीवन जानवरों से भी बदतर था। जानवर तो फिर भी कैद से छुटकर जंगल में रह सकता है, लेकिन भागे हुए गुलाम यदि पकडे जाते थे, तो पहले तो बुरी तरह पीटे जाते और फिर इन्हें बेच दिया जाता।

अमेरिका जैसे विकसित देश में भी यह घृणित दास प्रथा सन 1900ई० तक खूब प्रचलन में थी। जंगल में घूमते-घूमते उसे रात हो गयी, लेकिन छुपने की कोई जगह नहीं मिली। आखिर में उसे एक गुफा दिखाई पड़ी और वह उसी में घुस गया। कुछ ही देर बाद एक विशाल सिंह उसे गुफा की ओर आता दिखाई दिया। उसकी गुर्राहट सुनकर एंड्रूकुलिस डर से काँप उठा और शेर से सामना होने पर तो उसके प्राण ही सूख गए।

मृत्यु निश्चित जानकार उसने अपनी आँखे बंद कर ली और ईश्वर से प्रार्थना करने लगा, लेकिन शेर उसे देखकर भी चुपचाप खड़ा रहा। कुछ देर तक कोई हलचल न देख एंड्रूकुलिस ने अपनी आँखे खोली और शेर को शांत खड़े पाया। वह आश्चर्य से शेर को देखने लगा। शेर बार-बार अपने एक पैर को ऊपर-नीचे कर रहा था। गौर से देखने पर उसने पाया कि शेर के पैर में कोई चीज़ चुभी हुई है जिसकी वजह से खून भी निकल रहा है।

एंड्रूकुलिस ने शेर का इशारा समझ पैर में घुसे हुए कांटे को सावधानी से निकाल दिया। कुछ ही दिन में शेर का वह पैर अच्छा हो गया। उसके इस उपकार को शेर ने बहुत बढ़कर माना और प्रतिदिन एक पशु को मारकर एंड्रूकुलिस को लाकर देने लगा। इस तरह वह अपनी जिंदगी बिताने लगा। लेकिन इस तरह कब तक रहा जा सकता था, इसलिए एक दिन वह जंगल से भाग निकला।

इधर उसके भागने के बाद उसके मालिक ने राजा से शिकायत कर दी और सैनिक उसे इधर-उधर ढूंढने लगे। जंगल से बाहर निकलते ही वह पकड़ा गया और उसे राजा के सामने पेश किया गया। निर्दोष होने के बावजूद उसे मौत की सजा सुनाई गयी। उस समय की प्रथा के अनुसार उसे एक खुले मैदान में ले जाया गया, जो चारों ओर से ऊँची दीवारों से घिरा था।

जिसके चारों ओर नगर के सभी लोग इकट्ठे थे जो मौत के तमाशे को देखने आये थे। एक पिंजरे से एक भूखे शेर को उस जगह में छोड़ दिया गया। सब लोग इस द्रश्य को देखकर काँप उठे। एंड्रूकुलिस उस भयंकर शेर को देखकर और अपनी मौत तय जानकार ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। इस शेर को भी जंगल से पकड़ा गया था। वह कई दिन से भूखा था और गुस्से से भरा हुआ भी।

सामने शिकार देखकर वह उस पर आक्रमण करने के लिए बड़े जोर से दौड़ा, पर तभी एक महान आश्चर्य घटित हुआ, जिसे सबने देखा।एंड्रूकुलिस के पास आते ही शेर बिलकुल शांत होकर खड़ा हो गया और भूख-प्यास भूलकर पाले हुए पशु की तरह उसके पैरों को चूमने लगा और कदमों में लोटने लगा। बार-बार पूंछ हिलाकर वह अपनी ख़ुशी जाहिर कर रहा था।

एंड्रूकुलिस ने जब शेर को ध्यान से देखा, तो पाया कि यह तो वही सिंह है, जो उसकी गुफा का साथी था और जिसके पैर से उसने काँटा निकाला था। वह भी बड़े प्रेम से शेर को पुचकारने लगा और उसकी पीठ पर हाथ फेरने लगा। समस्त जनसमुदाय इस दुर्लभ घटना को देखकर रोमांचित था। जब राजा ने उससे शेर के इस आश्चर्यजनक व्यवहार का कारण पूछा, तो एंड्रूकुलिस ने सारी घटना सच-सच सुना दी।

एक जंगली और हिंसक पशु के इस कृतज्ञतापूर्ण व्यवहार को देखकर सब लोगों की आंखे झुक गयी। राजा ने न केवल उसे दासत्व से मुक्त कर दिया, बल्कि कई दूसरे गुलामों को छोड़ देने का भी हुक्म सुनाया। इसके अलावा उसने उस शेर को भी एंड्रूकुलिस को ही दे दिया। यह घटना तो खैर बरसों पुरानी है लेकिन इसमें समाया सन्देश शाश्वत है।

जो बार-बार इस सत्य की उद्घोषणा करता है कि कृतज्ञ बनो, किये हुए उपकार को मानो। जब एक क्रूर और हिंसक पशु तक कृतज्ञता प्रकट करने में पीछे नहीं रहता, तो मनुष्य से तो यह आशा स्वप्न में भी नहीं की जाती कि वह उपकार के बदले कृतघ्नता दिखाए और जो कोई कभी ऐसा करेगा, तो वह मनुष्य नहीं, बल्कि एक पशु से भी ज्यादा नीच समझा जायेगा।

“दया बुद्धिमत्ता से ज्यादा महत्वपूर्ण है और इसकी पहचान बुद्धिमान होने की शुरुआत है।”
– थिओडोर रुबिन

 

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