History of Shri Tirupati Balaji Temple in Hindi
घूमने-फिरने और पर्यटन के शौक़ीन लोगों के लिये धार्मिक स्थल भी अपने बेचैन मन को शांति देने का एक बेहतरीन उपाय है। सैर-सपाटे के लिये दुनिया में एक से बढ़कर एक जगह विद्यमान है, लेकिन धार्मिक स्थलों की बात कुछ अलहदा है। जहाँ लोग अपने अतृप्त मन की शांति के लिये, सूक्ष्म आध्यात्मिक उर्जा से लाभान्वित होने के लिये और अपनी इच्छित आकांक्षाओं की पूर्ति के लिये आते हैं।
Location of Tirupati Balaji Temple
ऐसे ही प्रसिद्ध और दर्शनीय तीर्थों में से एक है – तिरुपति मंदिर। आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले में स्थित है विश्वविख्यात श्री तिरुपति बालाजी मंदिर, जहाँ के इष्ट देवता है भगवान श्री वेंकेटश्वर। आज इस मंदिर की प्रतिष्ठा इतनी बढ़ गयी है कि इस पूरे क्षेत्र का नाम भी तिरुपति ही पड गया है। तिरुपति की कुल जनसँख्या 400,000 से भी अधिक है और यह एक प्रसिद्ध शहर है।
भारत सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने सन 2012-13 के लिये तिरुपति को “सर्वश्रेष्ठ विरासत शहर” के सम्मान से भी अलंकृत किया था। तिरुपति को हिंदू धर्म के कुछ सबसे पवित्र तीर्थस्थलों में से एक माना जाता है, क्योंकि यही पर तिरुमाला वेंकेटश्वर मंदिर स्थित है। इसे आंध्र प्रदेश की आध्यात्मिक राजधानी के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यहाँ पर अन्य कई मंदिर भी हैं।
तिरुपति मंदिर, पूरी दुनिया के साथ-साथ, इस धरती का भी सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है, जहाँ प्रति वर्ष लगभग 1 करोड़ दर्शनार्थी इष्ट दर्शन हेतु आते है। यह मंदिर समुद्र तल से 3200 फीट ऊंचाई पर, तिरुमला की पहाड़ियों के मध्य स्थित है। कई शताब्दी पूर्व बना यह मंदिर, दक्षिण भारतीय वास्तुकला और शिल्प कला का बेजोड़ नमूना हैं। प्राचीन तमिल साहित्य में तिरुपति को त्रिवेंगदम कहा गया है।
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भगवान विष्णु से है तिरुपति मंदिर का सम्बन्ध
आइये अब जानते है तिरुपति शब्द का क्या अर्थ है? द्रविड भाषा में तिरु का अर्थ है – “महादेवी लक्ष्मी” या “पवित्र” और पति का अर्थ है “उस देवी का पति” अर्थात “भगवान विष्णु”। इस तरह तिरुपति का संबंध, भगवान श्रीविष्णु से है जो संपूर्ण सृष्टि के पालक हैं। उन्हें ही यहाँ वेंकेटश्वर के नाम से जाना जाता है और पूजा जाता है। महर्षि व्यास रचित वाराह पुराण की एक कथा के अनुसार त्रेता युग में लंका विजय से लौटते हुए भगवान श्रीराम ने देवी सीता और श्री लक्ष्मण के साथ यहाँ कुछ समय के लिये विश्राम किया था।
प्रचलित कथा के अनुसार भगवान विष्णु इस मंदिर के भीतर स्वयं प्रकट हुए थे, ताकि वह कलियुग के लोगों को मोक्ष की ओर अग्रसर कर सकें। इसी कारण से तिरुपति बालाजी मंदिर को भूलोक का वैकुण्ठ भी कहते हैं, और भगवान बालाजी कलियुग के प्रत्यक्ष देव कहे जाते हैं। भविष्योत्तर पुराण में भी इस मंदिर की बड़ी महिमा गाई है। शायद यह इन शास्त्रों के कारण ही है, जो तिरुपति इतना अधिक प्रसिद्ध है।
पुराणों में इस मंदिर की कुछ इन शब्दों में प्रशंसा की गयी है –
वेंकटाद्रि समस्थानम ब्रह्मांडे नास्ति किंचना
वेंकटेश समो देवो न भूतो न भविष्यति
इस श्लोक का अर्थ है कि वेंकटाद्रि मंदिर (तिरुपति) के समान स्थान समस्त ब्रह्मांड में कहीं नहीं है और भगवान वेंकटेश के समान देवता न तो भूतकाल में कोई था और न ही भविष्य में कोई होगा।
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Tirupati Balaji Mandir History in Hindi
तिरुपति बालाजी मंदिर का इतिहास
तिरुपति के इतिहास को लेकर इतिहासकारों में मतभेद हैं। लेकिन यह स्पष्ट है कि तिरुपति 5वीं शताब्दी से ही वैष्णव धर्म का प्रमुख केंद्र रहा है। इस मंदिर की उत्पत्ति वैष्णव संप्रदाय से हुई है। यह संप्रदाय समानता और प्रेम के सिद्धांत को मानता है। वैष्णव आचार्यों और धर्मगुरुओं को अलवार के नाम से भी जाना जाता है ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना तीसरी सदी (ईसा के 300 वर्ष बाद) हुई थी।
पर मंदिर में पूजा की जो रीतियाँ प्रचलित हैं, वह 11वीं शताब्दी में प्रसिद्ध वैष्णव संत श्रीरामानुजाचार्य ने ही आरंभ करायी थी। तिरुपति अधिकांश समय तक विजयनगर के महान साम्राज्य का ही भाग रहा था। इस मंदिर के भव्य स्वरुप का बहुत कुछ श्रेय इसके शासकों को भी जाता है, जो अक्सर सोने-चाँदी और हीरों के रूप में मंदिर को बेशकीमती दौलत भेंट चढाया करते थे।
महाराज कृष्णदेवराय जो विजयनगर राज्य के सबसे प्रसिद्ध और महान शासक थे, भी सन 1517 में तिरुपति मंदिर आये थे और उनके ही आदेश पर मंदिर के भीतरी भाग पर सोने की परत चढाने का काम शुरू हुआ था। पर ऐसा नहीं है कि सिर्फ विजयनगर के शासक ही इस मंदिर के प्रति श्रद्धावान थे, बल्कि पल्लव, होयसल, पाण्डय और चोल सहित कई राजवंशों ने भी इसके निर्माण और विस्तार में बड़ी भूमिका निभाई थी।
तिरुपति मंदिर परिसर में मुख्य दर्शनीय स्थल
भगवान श्री वैंकटेश्वर का यह प्राचीन मंदिर, तिरुपति पहाड़ की सातवीं चोटी (वैंकटचला) पर स्थित है। यह श्री स्वामी पुष्करिणी के दक्षिणी किनारे पर स्थित है। माना जाता है कि वेंकट पहाड़ी का स्वामी होने के कारण ही इन्हें बाद में वैंकटेश्वर कहा जाने लगा। इन्हें सात पहाड़ों का भगवान भी कहा जाता है। यहां आने वाले प्रत्येक व्यक्ति की सबसे बड़ी इच्छा, भगवान वैंकटेश्वर के दर्शन करने की होती है। भक्तों की लंबी कतारें देखकर, सहज की इस मंदिर की प्रसिद्धि का अनुमान लगाया जा सकता है।
मंदिर के गर्भगृह में भगवान वैंकटेश्वर की प्रतिमा स्थापित है। यह मुख्य मंदिर के बरामदे में है। मंदिर परिसर में खूबसूरती से बनाए गए अनेकों द्वार, मंडप और छोटे मंदिर हैं। मंदिर परिसर में मुख्य दर्शनीय स्थल हैं – पडी कवली महाद्वार संपंग प्रदक्षिणम, कृष्ण देवर्या मंडपम, रंग मंडपम, तिरुमला राय मंडपम, आईना महल, ध्वजस्तंभ मंडपम, नदिमी पडी कविली, विमान प्रदक्षिणम, श्री वरदराजस्वामी श्राइन पोटु आदि।
मुख्य मंदिर के अलावा यहां अन्य मंदिर भी हैं। माना जाता है कि भगवान वैंकटेश्वर का दर्शन करने वाले हरेक व्यक्ति को उनकी विशेष कृपा प्राप्त होती है। तिरुपति बालाजी मंदिर की देखरेख का काम एक सरकारी संस्था, ‘तिरुपति तिरुमाला देवस्थानम’ करती है जिस पर इसके प्रबंध और परिचालन का दायित्व है।
तिरुमला और तिरुपति का भक्तिमय वातावरण, मन को श्रद्धा और आस्था से भर देता है। आंध्र प्रदेश के दक्षिणी भाग में स्थित यह मंदिर, दुनिया का सबसे धनी मंदिर है, क्योंकि दर्शनार्थी भेंट और दान के रूप में बड़ी धन-संपत्ति अर्पित करते है। कुछ वर्षों पहले गुजरात के एक बडे व्यवसायी परिवार ने 11 करोड़ रूपये मूल्य का बेशकीमती सोने का छत्र भगवान वेंकेटश्वर को चढ़ाया था।
Famous Tirupati Balaji Story in Hindi
भगवान तिरुपति से जुडी कहानी
धन-संपत्ति के आधार पर तिरुपति मंदिर, भारत का सबसे धनी मंदिर हैं। नवीनतम आँकड़ों के अनुसार बालाजी मंदिर ट्रस्ट के खजाने में 60 हजार करोड़ से भी ज्यादा की संपत्ति जमा है, जिसमे 1 टन से भी ज्यादा का सोना और जवाहरात शामिल है। इस तरह देखा जाय तो भगवान वेंकटेश्वर सभी देवी-देवताओं में सबसे ज्यादा अमीर है। लेकिन आपको आश्चर्य होगा कि इतने धनवान होने पर भी बालाजी सभी देवताओं से ज्यादा गरीब हैं।
दरअसल इसके पीछे एक अद्भुत पौराणिक कथा जुडी है। कथा के अनुसार एक बार महर्षि भृगु बैकुंठ लोक मे पधारे थे और आते ही उन्होंने भगवान विष्णु की छाती में एक लात मारी। लेकिन भगवान ने नाराज होने या दंड देने के बजाय भृगु के चरण पकड़ लिये और बोले – “महर्षि मेरी कठोर छाती पर प्रहार करने से कहीं आपके चरणों में तो चोट नहीं लग गयी।”
भगवान की यह विनम्रता देखकर, भृगु ने उनकी सहशीलता के आधार पर, उन्हें सबसे बड़ा देवता घोषित कर दिया और अपने स्थान पर चले आये। लेकिन उनकी पत्नी महालक्ष्मी, ऋषि और भगवान से नाराज हो गयी। उनकी नाराजगी भगवान से इसलिये थी कि उन्होंने ऋषि को गलत कर्म करने के बावजूद दंड क्यों नहीं दिया था।
विवाह के लिये कर्ज लिया है भगवान तिरुपति ने
नाराजगी के चलते ही देवी बैकुंठ छोड़कर चली गयी। उनके जाने के बाद भगवान विष्णु ने उन्हें बहुत ढूँढा, तो पता चला कि माँ लक्ष्मी ने धरती पर एक कुलीन ब्राह्मण के यहाँ, पद्मावती नाम की कन्या के रूप में जन्म लिया है। फिर भगवान ने भी अपना रूप बदला और पद्मावती के पास पहुँच गये। उन्होंने कन्या और उसके पिता के सामने विवाह का प्रस्ताव रक्खा, तो उन्होंने स्वीकार कर लिया।
लेकिन अब समस्या उत्पन्न हुई कि विवाह के लिये धन कहाँ से आएगा। इस परेशानी को दूर करने के लिये भगवान विष्णु ने भगवान ब्रहा और शिव को साक्षी मानकर, यक्षराज कुबेर से बहुत सारा धन कर्ज के रूप में लिया। कर्ज लेते समय भगवान ने वचन दिया कि वह कलयुग के समाप्त होने तक उनका सारा कर्ज सूद समेत चुका देंगे।
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