Last Updated on October 18, 2019 by Jivansutra
Best Hindi Story for Class 5 Students
– चाणक्य
यह घटना मध्य एशिया के एक बर्बर आक्रमणकारी तैमूरलंग के जीवन से संबंधित है। जो 14वीं सदीं में समरकंद(आज का उज्बेकिस्तान देश) का शासक था। उसका वास्तविक नाम तैमूर था, लेकिन एक पैर से लंगड़ा होने के कारण उसे सभी तैमूरलंग कहते थे। इतिहास के सबसे ज्यादा क्रूर और निर्दयी शासकों में उसका नाम शुमार है। उसकी क्रूरता से सारी प्रजा त्रस्त थी।
वह जिस राज्य पर भी आक्रमण करता, उसका पूरी तरह से विध्वंस कर देता और लोगों को मौत के घाट उतारकर गाँवों में आग लगवा देता। इस लंगड़े, ठिगने, महाकुरूप नरपिशाच ने न जाने कितने देशों को रौंद डाला था, न जाने कितने घरों को उजाड़ दिया था। एक बार उसने तुर्किस्तान पर हमला किया और अनेकों लोगों को बंदी बना लिया। उन बंदियों में तुर्किस्तान के प्रसिद्ध कवि अहमदी भी थे।
जब उन्हें पकड़कर तैमूर के सामने लाया गया, तो तैमुर ने दो ग़ुलामों की तरफ इशारा करते हुए अहमदी से कहा, “मैंने सुना है कि कवि लोग बड़े पारखी होते हैं। भला बताओ तो तुम्हारी नज़रों में इन ग़ुलामों की क्या कीमत है?” अहमदी ने जवाब दिया- “इन दोनों में से कोई भी पाँच सौ अशर्फियों से कम कीमत का नहीं है।” यह सुनकर तैमूर को बड़ा अचंभा हुआ।
उसने दोबारा कवि से सवाल पूछा, “भला मेरी क्या कीमत है?” अहमदी बड़े स्पष्टवादी और निर्भीक थे। यह जानते हुए भी कि अपना मनचाहा जवाब न मिलने पर तैमूर क्रूरता की किसी भी हद तक जा सकता है, उन्होंने जवाब दिया – “आपकी कीमत सिर्फ बीस अशर्फियाँ हैं।” आश्चर्य में डूबा तैमूर बोला, “इतनी कीमत की तो यह मेरी सदरी (शरीर के ऊपर पहने जाना वाला कपडा) ही है।”
“हाँ, यह बीस अशर्फियाँ बस उस सदरी की ही कीमत है।” – स्वाभिमानी कवि ने जवाब दिया। “यानी मेरी खुद की कोई कीमत नहीं है” – गुस्से से आंखे लाल करते हुए तैमूर ने अहमदी से पूछा। अहमदी ने जवाब दिया – “नहीं। जिस आदमी में लेशमात्र भी दया न हो, जो दूसरों का लहू बहाकर हँसता हो और जो घरों को उजाड़ता हो, भला ऐसे दुष्ट को भी क्या इंसान कहा जा सकता है?”
जो दूसरों को दुःख देने के लिए ही पैदा हुआ हो, जिसके नाम से लोग थर-थर कांपते हों और जो खुदा की बनायी इस दुनिया को बेनूर करता फिरता हो, फिर उसकी कीमत भी क्या होगी? तैमूर के बारे में कही गई सभी बातें भले ही सच थीं, लेकिन इन सब बातों ने उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंचा दिया और उसने अहमदी को मारने के लिए तलवार निकाल ली।
पर कवि अहमदी के चेहरे पर कोई शिकन न आई। उसने उन्हें मारने से पहले उनकी आखिरी ख्वाहिश पूछी। इस पर अहमदी ने बड़ी दिलेरी से कहा, “एक लुटेरा और खून का प्यासा शैतान भला किसी को क्या दे सकता है, वह तो बस छीन ही सकता है।” और आगे कुछ कहने से पहले ही तैमूर ने उनका क़त्ल कर दिया।
तैमूर ने भले ही इसमें अपनी बहादुरी मानी हो, पर वास्तव में वह एक निर्भीक और स्वाभिमानी व्यक्ति से परास्त हो चुका था, जिसने मौत सामने होने पर भी झुकना और डरना मंजूर न किया और इस बात की शिकन उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही थी।
– पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
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