Last Updated on June 10, 2019 by Jivansutra

 

Story of Krishna and Ashwathama in Hindi

 

“कहा जाता है कि अश्वत्थामा आज भी जीवित है और उन्हें सात चिरंजीवियों में से एक माना जाता है। लेकिन कम ही लोगों को मालूम होगा कि अश्वत्थामा को इतनी लम्बी उम्र, भगवान श्रीकृष्ण के शाप के कारण ही मिली थी और यह अधिक आयु अश्वत्थामा के लिये कोई वरदान नहीं, बल्कि अभिशाप ही थी।”

 

इस शानदार कहानी के पिछले दो भाग आप Ashwathama Story in Hindi और Brahmastra Story in Hindi में पढ़ चुके हैं। अब आगे पढ़ें – व्यासजी बोले -“अश्वत्थामा! ब्रह्मास्त्र का ज्ञान तो अर्जुन को भी है, लेकिन उसने तुम्हारी तरह क्रोध में आकर मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया। देखो! जिस देश में एक ब्रह्मास्त्र को दूसरे ब्रह्मास्त्र से दबा दिया जाता है, वहाँ बारह वर्ष तक वर्षा नहीं होती। इसी से प्रजा का हित करने के लिये अर्जुन ने तुम्हारे ब्रह्मास्त्र को नष्ट नहीं किया।

अतः तुम भी प्रजा और पांडवों की रक्षा करो। अपने अस्त्र को लौटाओ और अपने सिर की मणि इन्हें दे दो, ताकि पांडव तुम्हे प्राणदान दे दें। अश्वत्थामा बोला – “महात्मन! मेरी यह मणि दिव्य है। पांडवों के पास जो भी धन और रत्न है, यह उससे कहीं ज्यादा मूल्यवान है। क्योंकि इस मणि के रहने से देवता, राक्षस, नाग, यक्ष और अन्य किसी जंतु से कोई डर नहीं रहता।

इसके अलावा इसे बाँधने पर भूख-प्यास और चोट-रोग आदि की पीड़ा भी नहीं सताती। फिर भी आपने जो कुछ आदेश मुझे दिया है, वह तो मुझे करना ही होगा। लेकिन मेरा छोड़ा हुआ यह दिव्यास्त्र व्यर्थ नहीं हो सकता। इसे एक बार छोड़कर फिर से लौटा लाने की सामर्थ्य मुझमे नहीं है। इसीलिये अब इस अस्त्र को मै उत्तरा के गर्भ पर छोड़ता हूँ। आपकी आज्ञा का उल्लंघन मै कभी न करता, पर क्या करूँ, मै विवश हूँ।

ब्रह्मास्त्र के कारण मृत पैदा हुए थे परीक्षित

फिर दोनों ऋषि बोले – अच्छा ठीक है! इस अस्त्र को पांडवों के गर्भ पर छोड़कर शांत हो जाओ। तब अश्वत्थामा ने वह अस्त्र उत्तरा के गर्भ पर छोड़ दिया। यह देखकर भगवान श्रीकृष्ण बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने अश्वत्थामा से कहा – “कुछ दिन पहले अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा से, एक तपस्वी ब्राह्मण ने कहा था कि कौरवों का परिक्षय होने पर तेरे गर्भ से एक बालक पैदा होगा।

उस ब्राह्मण का वचन सत्य होगा, वह परीक्षित ही पांडवों के वंश को चलाने वाला बालक होगा। श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर अश्वत्थामा क्रोध में भरकर बोला – “केशव! तुम पांडवों का पक्ष लेकर जो बात कह रहे हो, वह कभी नहीं हो सकती। मेरा वचन असत्य नहीं होगा। यह भयंकर अस्त्र उत्तरा के गर्भ पर अवश्य गिरेगा।

तब भगवान श्रीकृष्ण बोले – “अवश्य ही इस दिव्य अस्त्र का प्रभाव अमोघ होगा, लेकिन गर्भ में मरा हुआ वह बालक फिर से दीर्घजीवन प्राप्त करेगा। हाँ तुम्हे जरुर सभी समझदार, पापी और कायर ही समझते हैं। क्योंकि तुम बार-बार पाप ही बटोरते हो और बालकों की हत्या करते हो। इसीलिये तुम्हे इस पाप का फल भोगना ही पड़ेगा।

भगवान कृष्ण ने अश्वत्थामा को दिया था भयंकर शाप

तुम तीन हजार वर्ष तक इस पृथ्वी पर भटकते रहोगे और किसी भी जगह किसी भी इन्सान के साथ तुम्हारी बातचीत नहीं हो सकेगी। तुम्हारे शरीर से पीब और लहू की गंध निकलेगी, इसलिये तुम मनुष्यों के बीच नहीं रह सकोगे। घने और दुर्गम जंगलों में ही पड़े रहोगे। परीक्षित तो दीर्घायु प्राप्त करके आचार्य कृप से सब प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों का ज्ञान प्राप्त करेगा और साठ वर्ष तक पृथ्वी पर राज्य करेगा।

दुरात्मन! देखना, यह परीक्षित नाम का राजा तुम्हारी आँखों के सामने ही गद्दी पर बैठेगा। वह तुम्हारे शस्त्र की ज्वाला से जल अवश्य जायेगा, लेकिन मै उसे पुनः जीवित कर दूँगा। नराधम! उस समय तुम मेरे तप और सत्य का प्रभाव देख लेना। भगवान श्रीकृष्ण का शाप सुनकर अश्वत्थामा उदास हो गया और पांडवों को मणि देकर, सबके सामने दुखी मन से वन में चला गया।

फिर पांडव द्रौपदी के पास आये और उसे वह मणि दे दी। जिसे फिर द्रौपदी और महर्षि व्यास के कहने पर युधिष्ठिर ने धारण कर लिया। पांडवों ने अश्वत्थामा को सिर्फ इसलिये नहीं मारा, क्योंकि वह ब्राह्मण और गुरुपुत्र था। अपनी संतानों का हत्यारा होने के बावजूद न सिर्फ पांडवों ने, बल्कि द्रौपदी ने भी उसे क्षमा कर दिया था, जो उनके चरित्र की महानता को ही दर्शाता है।

“महान कार्य के लिये लम्बे समय तक महान और द्रढतापूर्वक प्रयास की आवश्यकता होती है। शील हजार ठोकरों से गुजरकर तब प्रतिष्ठित होता है।”
– स्वामी विवेकानंद
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