Last Updated on November 30, 2018 by Jivansutra
Sikandar Story in Hindi on Attraction of Woman
– चाणक्य
King Sikandar Story in Hindi on Beauty
भारतीय उपमहाद्वीप से लौटते समय दिग्विजयी सिकंदर के साथ असाधारण सुन्दरी फिलिप्स भी थी जिसे उसने एक युद्ध में जीता था। उसके रूपजाल में फँसकर सिकंदर सब कुछ भूल गया था। अब उसके मन में एक विशाल साम्राज्य के सपने नहीं, बल्कि एक रूपसी के कामुक प्रेम के ख्वाब पलने लगे थे। पर सिकंदर जिस प्यार को प्यार समझ रहा था, वह सिर्फ एक षडयंत्र था।
दरअसल फिलिप्स एक विषकन्या थी जिसे सिकंदर के विरोधियों ने उसकी हत्या करने के लिये भेजा था। पर फिलिप्स के इस रूपजाल को महान यूनानी दार्शनिक अरस्तू ने पहचान लिया, जो सिकंदर के गुरु भी थे। उन्होंने सिकंदर को सावधान किया, पर सिकंदर तो उस पर बुरी तरह से मोहित था, इसीलिये वह उनकी बातों को भूल गया। कहा भी गया है स्त्रियों के रूप-लावण्य का आकर्षण दुर्निवार होता है।
जब अपने राज की बात फिलिप्स को पता चली तो उसने बदला लेने के लिये अरस्तू पर भी अपने रूप का जाल फेंका। वह भी उसके पीछे ऐसे पागल हुए कि सब-कुछ भूलकर उसके क्रीडा-पशु की तरह व्यवहार करने लगे। एक दिन फिलिप्स ने अपने पीछे पागल हुए अरस्तू को अपमानित करने के उद्देश्य से घुटनों के बल घोडा बनाया और उनकी पीठ पर सवार हो गयी।
फिर उसने उन्हें चाबुक मारकर सारे घर में दौड़ाया। अचानक ही उसमे आसक्तचित्त सिकंदर भी वहाँ आ पहुँचा और जब उसने उस महान यूनानी दार्शनिक की वह अवस्था देखी तो वह आश्चर्यचकित रह गया। उसे विश्वास नहीं हुआ कि एक महान, ज्ञानी विद्वान ऐसा भी कर सकता है। उसने अरस्तू से पूछा – “यह सब क्या है? आप यह क्या कर रहे हैं?”
वास्तव में अरस्तू उस रमणी के रूप के पीछे पागल नहीं थे, वह तो सिर्फ सिकंदर को शिक्षा देने के लिये यह सब कर रहे थे। उन्होंने गंभीर स्वर में उत्तर दिया – “सिकंदर, जो सुन्दरी मुझ जैसे इन्सान से यह सब करवा सकती है, सोचो वह तुम जैसे अनुभवहीन और मुझसे कहीं कम उम्र वाले व्यक्ति के लिये कितनी खतरनाक सिद्ध हो सकती है?”
मैंने तुम्हे पहले ही सावधान किया था, लेकिन तुमने मेरी बात नहीं मानी। लो अब मैंने तुम्हारे सामने इसका प्रमाण भी प्रस्तुत कर दिया है। उनकी बात सुनकर सिकंदर लजा गया और फिर उसने अपने उद्देश्य पर ही ध्यान लगाया। वास्तव में स्त्रियों के रूप-लावण्य का आकर्षण बेहद प्रबल और सम्मोहक होता है। जब ऋषि, तपस्वी और योगी तक इनके जाल में फँसने से नहीं बच सके, तब सामान्य नवयुवक क्या चीज हैं! इसीलिये अति से दूर रहना ही उचित है।
– चाणक्य
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