Last Updated on November 2, 2018 by Jivansutra
Sardar Vallabh Bhai Patel Stories in Hindi
Vallabh Bhai Patel and Death of Her Wife
हर दिन की तरह आज भी यह 36 वर्षीय वकील न्यायालय में अपने मुकदमे की पैरवी कर रहा था। लंदन से बैरिस्टर बनकर भारत आया यह नवयुवक अपनी विद्वत्ता, निष्कपटता, मिलनसार स्वभाव और उच्च आदर्शों के कारण धीरे-धीरे न्यायिक क्षेत्र में अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाता जा रहा था। अपने कार्य के प्रति यह युवक इतना समर्पित था कि गंभीर रूप से बीमार अपनी पत्नी को बम्बई के एक अस्पताल में भर्ती कराकर वापस अपने मुकदमे की पैरवी करने लग गया था ताकि उसके मुवक्किल को किसी प्रकार का नुकसान न उठाना पड़े।
अदालती कार्यवाही चल ही रही थी कि अचानक उसके साथी ने आकर उसे एक तार दिया, जिसे उसने शांति के साथ चुपचाप पढ़कर अपनी जेब में रख लिया और फिर मुकदमे पर जिरह करने लगा। केस का फैसला अपने पक्ष में होने तक उसने अपने मन का भाव किसी पर भी प्रकट नहीं होने दिया। जब अदालती कार्यवाही का समय समाप्त हो गया तो जज ने तार के कारण पैदा हुए व्यवधान के बारे में पूछा।
उस कर्मठ अधिवक्ता ने भारी मन से उत्तर दिया – “श्रीमान! उस तार में मेरी पत्नी की मृत्यु का समाचार था जो पिछले कुछ दिन से बीमार चल रही थी। उसकी यह बात सुनकर जज सहित अदालत में उपस्थित सभी लोग हैरत में पड़ गये, क्योंकि यह समाचार इतना दुखद था कि कोई भी व्यक्ति अपने प्रियजन के साथ ऐसा होने पर विचलित हुए बिना नहीं रह सकता था।
सम्मुख कर्तव्य को ही लक्ष्य मानने वाला यह नवयुवक और कोई नहीं, बल्कि स्वयं स्वतंत्र भारत के वास्तविक निर्माता वल्लभभाई पटेल थे जिन्हें सारा देश लौह पुरुष के नाम से जानता है। असाधारण सहनशीलता के अपने इस दिव्य सदगुण के कारण ही उन्हें यह श्रेष्ठ सम्मान हासिल हुआ था। अन्यथा ऐसा कौन है जो अपने जीवनसाथी को उस दशा में छोड़कर, एक दूसरे शहर में जाकर अपने कार्य पर समुचित ध्यान दे सके और उसके विछोह पर भी विचलित न हो।
Vallabh Bhai Patel in School
यह घटना उस समय की है जब वल्लभभाई गवर्नमेंट हाई स्कूल, बडौदा में पढ़ते थे। एक दिन जब उनकी गणित की कक्षा चल रही थी तो शिक्षक बीजगणित के एक सवाल को हल करते समय बीच में ही अटक गये। जब कुछ देर तक उनसे प्रश्न हल नहीं हुआ तो उन्होंने अध्यापक से कहा – “श्रीमान लगता है आपको इस प्रश्न का हल मालूम नहीं है!”
झुंझलाहट में उनके अध्यापक ने उत्तर दिया – ” तुम्हे पता है तो इस सवाल को हल करो और मास्टर बन जाओ।” वल्लभभाई ने तुरंत उठकर प्रश्न को हल किया और अध्यापक की कुर्सी पर जाकर बैठ गये। इससे अध्यापक इनसे और चिढ गया और उसने प्रधानाध्यापक श्री नरवने से वल्लभभाई की शिकायत कर दी।
अपने बचाव में वल्लभभाई ने स्पष्टीकरण दिया कि वह तो बस अपने अध्यापक के निर्देशों का पालन कर रहे थे। लेकिन प्रधानाध्यापक ने चेतावनी के लहजे में कहा कि अगर उन्होंने अपना व्यवहार नहीं सुधारा तो उन्हें स्कूल से निकाल दिया जायेगा। निर्भीक और सत्य के पुजारी वल्लभभाई ने उसी समय स्कूल छोड़ दिया और नादियाड लौट गये।
Vallabh Bhai Patel as an Strict Administrator
सरदार पटेल सिर्फ निर्भीक और सहनशील ही नहीं, बल्कि बहुत अनुशासनप्रिय भी थे। यह घटना उन दिनों की है जब देश आजाद हो चुका था और पंडित गोबिंद बल्लभ पन्त उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री चुने गये थे। लेकिन कुछ ही दिन पश्चात कांग्रेस में विरोध के सुर उभरने लगे और पंतजी के लिये सरकार चलाना मुश्किल हो गया। ऐसे में उन्होंने सरदार पटेल से सहायता माँगी।
वल्लभभाई ने लखनऊ में विधानसभा भवन में कांग्रेस पार्टी की प्रदेश कार्यकारिणी की एक मीटिंग रखी और सभी निकास द्वारों (हाल से बाहर निकलने के रास्ते) को पूरी तरह से खोल देने को कहा। इसके पश्चात उन्होंने आदेशात्मक सुर में कहा “जो जाना चाहते हैं जाने के लिए स्वतंत्र हैं।” उन्होंने दोबारा कहा – “मै फिर से कह रहा हूँ जो जाना चाहते हैं वे जाने के लिए आजाद हैं।” यही वाक्य उन्होंने तीसरी बार फिर से दोहराया।
लेकिन सभा में पूरी तरह से खामोशी छायी हुई थी और कोई भी अपने स्थान से उठने का साहस नहीं कर सका। इसके बाद सरदार पटेल ने सभी दरवाजों को बंद करने के लिये कहा और अपना भाषण आरंभ किया। उन्होंने पंतजी जैसे महान देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानी का विरोध करने वालों को अपने षडयंत्र छोड़ देने को कहा। इसके पश्चात फिर कभी विरोध के सुर नहीं उठे।
कलह और मुश्किलों के समाधान का सरदार पटेल का अपना ही तरीका था। यह उनके ही करिश्माई व्यक्तित्व का कमाल था कि 500 से भी अधिक रियासतों में बंटा भारत एक विशाल और एकीकृत राष्ट्र के रूप में बदल पाया। उनके योगदान को देखते हुए यही कहना पड़ता है कि अगर महात्मा गांधी ने भारत को आजादी दिलायी थी तो सरदार पटेल ने भारत का निर्माण किया था।
आइये उनके जन्मदिन के इस पावन अवसर पर हम भी यह संकल्प लें कि उनकी ही तरह हम भी अपने देश और देशवासियों के हित में ही कर्म करेंगे। जिस तरह उन्होंने देशवासियों के हित को प्रधानता देते हुए राजाओं और उनके अधिकारों की चिंता नहीं की, ठीक उसी प्रकार से हम भी देशवासियों के हित की चिंता करते हुए दुष्ट और भ्रष्ट सरकारों की चिंता नहीं करेंगे।
– विक्टर फ्रंकेल
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