Last Updated on October 31, 2018 by Jivansutra
Birbal Ki Khichdi Story in Hindi
– पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
मुग़ल बादशाह अकबर और उनके मंत्री बीरबल की विनोदपूर्ण कहानियाँ तो अधिकांश लोगों ने पढ़ी ही होंगी। हास्यपूर्ण और संदेशप्रद कहानियों में इन्हें सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। सभी कथाओं में बीरबल का अदभुत बुद्धि-चातुर्य, उनकी हाजिरजवाबी और लोगों के प्रति उनकी उदारता, सहज ही सबका ध्यान अपनी ओर खींचती है। प्रस्तुत है उन्ही कथाओं में से एक हास्यप्रद कहानी।
एक बार सर्दियों के मौसम में शहंशाह अकबर अपने दरबारियों के साथ शहर घूमने निकले। चलते-चलते वे एक पुराने जलाशय के पास पहुँचे, जहाँ केवल इक्का-दुक्का लोग ही मौजूद थे। बादशाह कुछ प्यासा था, इसलिये उसने तालाब का पानी पीने का ही निश्चय किया। पर जैसे ही उसने पानी पीने को तालाब में अपना हाथ डाला, ठन्डे पानी की वजह से उसका हाथ बिल्कुल सुन्न पड़ गया।
फिर तो बादशाह पानी पीना भूल गया, और बस किसी तरह से अपना हाथ ही बाहर निकाल सका। तभी शहंशाह को एक मसखरी सूझी। उसने अपने साथियों से कहा, “क्या आप लोगों में से कोई इतना बहादुर है जो एक पहर भी इस शीतल जल में खड़ा हो सके।” अकबर की बात सुनकर सब सन्न रह गये। उनमे से किसी का मुँह न खुल सका।
न जाने बादशाह के मन में क्या आया, उसने उसी वक्त सारे शहर में इस बात की मुनादी करवाने का आदेश दिया कि, “जो व्यक्ति पूरी रात इस तालाब के शीतल जल में खड़ा रहकर बिता देगा उसे बतौर इनाम पचास हजार रूपये दिये जायेंगे।” इतना बड़ा इनाम सुनकर सब लोगों के मुँह में पानी आ जाता, पर जब पूरी शर्त के बारे में पता चलता तो मन मनोसकर रह जाते।
उनका डर बहुत हद तक सही भी था। इस जमा देने वाले सर्द मौसम में तालाब के शीतल जल में रातभर खड़ा रहना आत्महत्या करने से कम नहीं था। पूरे राज्य में किसी इंसान की इतनी हिम्मत नहीं पड़ी कि उस शर्त को पूरा कर दे, सिवाय उस गरीब ब्राह्मण के, जो अपनी बेबसी और लाचारी के कारण इतना मजबूर था कि अपनी जवान बेटियों का विवाह भी नहीं कर सकता था।
मरता क्या न करता। अंतिम उपाय के रूप में उसने यह सोचकर अपनी किस्मत आजमाने का निश्चय किया कि यदि बेटियों के हाथ पीले न कर पाया तो भी मेरा मरण तय है, इससे अच्छा तो यही है कि मै पैसों का इंतजाम करते-करते ही मरुँ। उसने बादशाह की शर्त स्वीकार कर ली और रात भर उस सर्द पानी में रहने को तैयार हो गया।
शहंशाह के हुक्म के मुताबिक उस तालाब पर सिपाहियों का सख्त पहरा बैठा दिया गया ताकि कोई धोखेबाजी न हो सके। बेचारा ब्राह्मण पूरी रात नंगे बदन उस शीतल जल में खड़ा रहा। वह मरा तो नहीं, परन्तु मरणासन्न हालत में अवश्य पहुँच गया। कुछ स्वस्थ होकर वह दरबार में हाजिर हुआ और अकबर से इनाम देने की फ़रियाद की।
बादशाह उसकी बहादुरी से बहुत खुश हुआ और उसने संतरियों से इसकी सत्यता के विषय में पूछा। सैनिकों ने भी ईमानदारी से कहा, “हाँ बादशाह सलामत! यह ब्राह्मण रात भर शीतल जल में खड़ा रहा था।” इस पर बादशाह अकबर ने खजांची को उस ब्राह्मण को पचास हजार रूपये देने का हुक्म दिया। वह गरीब ब्राह्मण तो इस बात से खुश था कि चलो अब तो इस मुफलिसी से पीछा छूटा।
पर कई दरबारी उससे इसलिये खूब जल-भुन रहे थे, क्योंकि उसे इतनी बड़ी रकम मिलने वाली थी। उन ईर्ष्यालु दरबारियों ने उन सैनिकों को पैसे का लालच देकर अपनी तरफ मिला लिया और बादशाह से शिकायत की, “हुजूर, यह ब्राह्मण रात भर पानी में जरूर खड़ा रहा है, पर यह महल की छत पर जलने वाले दीये को देखकर उसकी गर्मी भी पाता रहा है, इसलिये इसे यह इनाम नहीं दिया जा सकता।
बादशाह ने सैनिकों से इस बाबत पूछा तो पैसे के लालच में उन्होंने भी कह दिया, “हाँ हुजूर! यह ब्राह्मण रात भर उसी दिये को देख रहा था।” बादशाह ने उस ब्राह्मण को झूठा करार देते हुए उसे इनाम न देने का हुक्म सुनाया। ब्राह्मण रोता-बिलखता बीरबल के घर पहुँचा और उससे मदद की याचना की। बीरबल ने उस ब्राह्मण को सांत्वना दी और वापस उसके घर भेज दिया।
आगे पढिये इस कहानी का अगला भाग Hindi Story on Understanding: बीरबल की समझदारी
– सोमदेव
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