Last Updated on June 20, 2020 by Jivansutra
Best God Story in Hindi on Power of Faith
– नारद पुराण
विख्यात दार्शनिक औस्पेंसकी, रूस के महान अध्यात्मवादी और योगी जॉर्ज गुरजिएफ के शिष्य थे। औस्पेंसकी दर्शनशास्त्र के अध्यापक थे, पर उनके ज्ञान की पूर्णता और इस विषय की व्यापक समझ उन्हें गुर्जिएफ़ के सानिध्य में आने के पश्चात ही हो पाई थी। गुर्जिएफ़ चेतना के उच्चस्तरीय विज्ञान में बहुत उच्च स्तर तक पहुँचे हुए थे। वे मानवीय व्यक्तित्व के हर पहलू को सूक्ष्मता से जानते थे।
औस्पेंसकी भी अपने महान गुरु के संरक्षण में काफी आगे बढ़ चुके थे, पर कभी-कभी यह प्रश्न उनके मन को विचलित करने लगता था कि आखिर ईश्वर को कैसे पाया जाय? उसके दर्शन हमें किस प्रकार से हों? एक दिन उन्होंने अपनी जिज्ञासा गुर्जिएफ़ के सामने रखी। गुर्जिएफ़ औस्पेंसकी को देखकर पहले तो मंद-मंद मुस्कुराते रहे।
फिर शांत और गंभीर शब्दों में उनसे कहा, “बहुत शीघ्र ही तुम्हे अपने प्रश्न का उत्तर मिल जायेगा।” बात आई-गई हो गई। एक दिन पाँच व्यक्ति गुर्जिएफ़ के पास आये। अध्यात्मविद्या के मर्मज्ञ के रूप में गुर्जिएफ़ की ख्याति दिनोदिन बढती ही जा रही थी, इसी से प्रभावित होकर वे पाँचों व्यक्ति उनका शिष्यत्व ग्रहण करने को वहाँ आये थे।
गुर्जिएफ़ ने औस्पेंसकी के सामने ही उन लोगों से पूछा, “आप लोग मेरे शिष्य क्यों बनना चाहते हैं? सभी ने एक स्वर में उत्तर दिया, “क्योंकि हम ईश्वर को जानना चाहते हैं, उसे पाना चाहते हैं।” गुर्जिएफ़ जल्दी से किसी को अपना शिष्य नहीं बनाते थे। क्योंकि वे जानते थे कि शिष्य का उत्तरदायित्व वहन करना कितनी कष्टसाध्य प्रक्रिया है?
उन्होंने उनकी बात का कोई उत्तर दिये बिना औस्पेंसकी के कान में कुछ कहा और फिर अपने साधना कक्ष में चले गये। अपने गुरु की आज्ञानुसार औस्पेंसकी ने पहले उन लोगों को कुछ जलपान कराया और फिर उनसे विनम्र शब्दों में कहा, “गुरुदेव आपको दीक्षा देने को तैयार हैं, पर पहले आपको परीक्षा देनी होगी। यदि आप परीक्षा देने को तैयार हैं तो कल प्रातःकाल यहाँ पर आ जाइये।
पाँचों लोगों ने उनकी बात मान ली और कल सुबह आने की बात कहकर चले गये। अगले दिन पाँचों व्यक्ति प्रातःकाल होते ही गुर्जिएफ़ के आश्रम में पहुँच गये। उन दिनों उस क्षेत्र में कड़ाके की सर्दी पड रही थी। इसलिये सभी लोग गर्म कपडे पहने हुए थे, पर गुर्जिएफ़ केवल एक बेहद हल्का और महीन वस्त्र ही पहने हुए थे। औस्पेंसकी सहित पाँचों व्यक्तियों ने उन्हें प्रणाम किया।
फिर गुर्जिएफ़ ने औस्पेंसकी से कहा, “तुमने इन्हें मेरी शर्त तो बता दी हैं ना! “जी गुरुदेव!” – औस्पेंसकी ने संक्षिप्त उत्तर दिया। “तब ठीक है, सभी अपने-अपने गर्म वस्त्र उतारकर मेरे पीछे-पीछे आओ।” – गुर्जिएफ़ शांत स्वर में अपनी बात कहकर आश्रम के पास बह रही नदी के तट पर चल दिये। उस दिन ठंड कुछ ज्यादा ही थी।
इसके अलावा शीतलहर चलने से मौसम और भी ज्यादा ठंडा हो गया था। सांय-सांय करती तेज हवाएँ कपड़ों के आर-पार हो रही थीं। पाँचों व्यक्ति ठंड से काँप रहे थे, पर चूंकि सभी गुर्जिएफ़ का शिष्यत्व ग्रहण करना चाहते थे, इसलिये चुपचाप उनके पीछे चले जा रहे थे। नदी के तट पर जाकर गुर्जिएफ़ एक क्षण को रुके और फिर तुरंत नदी के पानी में उतर गये।
आगे पढिये इस कहानी का अगला भाग – Hindi Story on Real Ambition: हर सफलता का राज है सच्ची इच्छा
– स्वामी विवेकानंद
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