Last Updated on February 11, 2023 by Jivansutra
Short Inspirational Story in Hindi on Ability
महान सूफी संत शेख इब्राहीम इब्न अदम पहले खलीफा थे, पर बाद में बोध होने पर उन्होंने ईश्वर-प्राप्ति की प्रबल इच्छा से संसार का त्याग कर दिया। एक बार शेख इब्राहीम कहीं जा रहे थे, रास्ते में एक भिखारी ने उनसे भीख में कुछ पैसे माँगे। संत को उसकी बेचारगी और दुर्दशा देखकर बड़ी दया आई। उन्होंने भिखारी से कहा, “इस तरह भीख माँगने से तो तुम्हे बहुत रंज होता होगा, अगर तुम मेरे साथ चलो तो मै तुम्हारे खाने-पीने का अच्छा इंतजाम कर सकता हूँ।”
भिखारी तैयार हो गया। संत उसे लेकर एक सेठ के पास गये और उससे उस भिखारी को काम पर रख लेने को कहा। सेठ ने विनम्रता से उनकी बात मान ली और भिखारी को काम पर रख लिया। बात आई-गई हो गयी। कुछ दिन बाद संत जब उसी स्थान से गुजर रहे थे तो उन्होंने उसी भिखारी को फिर से सड़क पर भीख मांगते देखा।
जब संत ने उससे ऐसा करने का कारण पूछा तो भिखारी ने जवाब दिया, “एक दिन जब मै अपने काम में मशरूफ हुआ रेगिस्तान से गुजर रहा था तो अचानक ही मुझे एक चील दिखाई दी जो दोनों आँखों से अंधी थी। मेरे मन में सवाल उठा कि आखिर यह चीलअपना पेट कैसे भरती होगी? इस हालत में तो इसे भूखे मर जाना चाहिये था।
इसलिये मैंने कुछ दिन तक उस चील पर नज़र रखी और मै यह देखकर दंग रह गया कि एक दूसरी चील उसके दाने-पानी का इंतजाम करती थी। उसी वक्त मैंने निश्चय कर लिया कि अब मै कोई काम नहीं करूँगा। जब अल्लाह एक अंधी चील के खाने-पीने का इंतजाम कर सकता है, तो वह मेरी गुजर-बसर की फिक्र क्यों न करेगा।
मैंने सेठ की नौकरी छोड़ दी और वापस यहीं आकर भीख माँगने लगा। अब मै इसी में खुश हूँ। न तो मुझे किसी बात की चिंता है और न ही कुछ पाने की चाह है।” संत इब्राहीम इब्न अदम ने पहले तो कुछ पल तक सोचा, फिर बड़े प्रेम के साथ उस भिखारी से कहा, “यकीनन उस अंधी चील की मदद करने वाली चील ने निहायत ही नेक काम किया था।”
“पर तुमने उस अंधी चील के जैसी जिंदगी बिताने के बजाय उस दूसरी चील के जैसे बनने के बारे में क्यों नहीं सोचा जो खुले आसमान में उड़कर दुखियों को ढूँढने और उनकी मदद करने के मौके की तलाश में रहती है।” भिखारी शेख इब्राहीम की बात सुनकर शर्मिंदा हो गया और उसने उसी समय भविष्य में एक नेक और उदार इंसान बनने का संकल्प लिया।
मनुष्य जीवन का गौरव भी इसी में निहित है कि वह हमेशा एक उदार दाता का स्थान ग्रहण करे। इस दुनिया में उस अंधी चील के जैसे दुखी, निराश और पीड़ितों की कमी नहीं। हममे से लगभग प्रत्येक व्यक्ति का जीवन किसी न किसी समय दुःख या संघर्ष से भरा रहा है। याद रखिये जीवन को असहाय और दीन रहकर भी जिया जा सकता है, पर क्या ऐसा जीवन मनुष्य की प्रतिष्ठा के अनुरूप होगा?
क्या सृष्टि के सर्वोत्तम जीव की महिमा इससे घट नहीं जायेगी? निःसंदेह जब दुःख अपने चरम पर होता है तो उसकी असहनीय पीड़ा को केवल भुक्तभोगी ही समझ सकता है, पर तब भी उसे किसी न किसी तरह सहना ही पड़ता है। इसलिये आगे बढें, अन्यथा फिर उस जीवन में आत्मगौरव, श्रेष्ठता और आनंद के दिव्य पुष्प न खिल सकेंगे और न ही लोककल्याण और आत्मकल्याण का उद्देश्य पूरा हो सकेगा।
– पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य
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