Last Updated on August 1, 2023 by Jivansutra
Best Kalidas Story in Hindi on Willpower
– अरविन्द सिंह
मनुष्य अगर संकल्प कर ले तो क्या कुछ नहीं कर सकता। ऐसी कौन सी मुश्किल है जो संकल्प के सामने ठहर सके। स्वामी विवेकानंद कहते हैं – मनुष्य के अन्दर प्रचंड शक्ति भरी हुई है। वह चाहे तो पहाड़ों को ख़ाक में मिला सकता है।” इस संसार में ऐसे अनेकों लोग उदाहरण के रूप में मिल जायेंगे जिन्होंने संकल्प की शक्ति का आश्रय लेकर न केवल अपना इच्छित लक्ष्य ही प्राप्त किया, बल्कि इतिहास में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में लिखाने में भी सफल रहे।
इस प्रेरक सत्य कथा के माध्यम से हम यही तथ्य प्रकट करना चाहते हैं कि संकल्प और धैर्य के अप्रतिम मेल के सहारे संसार में कुछ भी पाना असंभव नहीं है। महाकवि कालिदास के नाम से तो सभी परिचित ही होंगे। वे उज्जैन नरेश महाराज विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक थे। उनकी अदभुत विद्वत्ता, काव्य क्षमता और प्रखर मेधा की ख्याति उस समय केवल उज्जैन ही नहीं, बल्कि संपूर्ण भारत में फैली हुई थी।
पर कालिदास जन्मजात बुद्धिमान नहीं थे, बल्कि अपनी दीर्घकाल की प्रचंड साधना के पश्चात ही वे महाकवि बन सके थे। उनके एक जड्मूर्ख से असाधारण विदवान बनने की कहानी किसी परीकथा से कम नहीं है। यह जितना रोमांचित करती है, उतना ही अनुपम सन्देश भी देती है कि अगर मनुष्य कुछ करने की ठान ले तो वह सब कुछ कर सकता है।
कालिदास जब युवा थे, तो दूसरों की तरह वे भी बहुत सामान्य ढंग से अपनी गुजर-बसर करते थे। उनके क्रिया-कलापों से अनचाहे ही ऐसा अवसर पैदा हो जाता था कि लोग हँसे बिना न रह पाते थे। उनके साथी भी उनकी मूर्खता की न केवल हंसी उड़ाते, बल्कि अपना उल्लू भी सीधा करते थे। कालिदास जिस राज्य में निवास करते थे, उसके राजा की एक पुत्री थी जिसका नाम विद्योत्तमा था।
विद्योत्तमा अपने नाम के अनुरूप ही बहुत विदवान और बहुत सुन्दर थी, पर इसके अलावा उसमे बड़ा अहंकार भी था। उसके रूप और गुणों पर मुग्ध होकर कई राजकुमारों ने उससे विवाह करना चाहा, पर उस राजकुमारी ने प्रतिज्ञा कर रखी थी कि वह केवल उसी व्यक्ति से विवाह करेगी जो उसे शास्त्रार्थ (दो विद्वान व्यक्तियों के बीच स्वयं को सर्वोच्च सिद्ध करने के लिये किया गया वाद-विवाद) में हरा देगा।
बहुत सारे राजकुमार, पंडित और शास्त्रज्ञानी जो स्वयं को बड़ा विदवान मानते थे राजकुमारी से शास्त्रार्थ करने आते और हारकर मुंह लटकाये लौट जाते। हार और वह भी एक स्त्री से, इस बात से उनके अहं को चोट तो बहुत पहुँचती थी पर बेचारे कुछ कर भी तो नहीं सकते थे। जब कोई भी विद्वान विद्योत्तमा को पराजित न कर सका, तो उन सबने मिलकर उससे बदला लेने की एक योजना बनाई।
सभी ने एक स्वर से उसका विवाह एक जड्मूर्ख से कराने का निश्चय किया जिससे वह सारी जिंदगी पछताती रहे। योजना के अनुसार सभी लोग ऐसे परम मूर्ख की तलाश में निकल पड़े, पर वे जिस प्रकार का व्यक्ति चाहते थे वैसा कोई उन्हें मिल नहीं पा रहा था। सभी लोग निराश हो ही चले थे कि एक दिन अचानक कालिदास के रूप में उन्हें वह दुर्लभ व्यक्ति मिल ही गया जिसकी उन्हें लम्बे समय से तलाश थी।
हुआ कुछ यूँ कि एक दिन जब पंडितों की टोली अपने इस खोज अभियान में चारों ओर भटक रही थी तो उनमे से एक विदवान की नजर अनायास ही पास खड़े पेड़ पर चली गयी। वहां उसने जो देखा उससे वह आश्चर्यचकित हुए बिना न रह सका। पेड़ पर एक युवक बैठा लकड़ी काट रहा था, पर वह जिस डाल पर बैठा था उसी को कुल्हाड़ी से काटे जा रहा था।
निश्चित था कि डाल के साथ-साथ वह भी जमीन पर नीचे गिरता। पर इसका उसे जरा भी ज्ञान नहीं था कि आखिर वह क्या कर रहा है? सारे पंडित यह द्रश्य देखकर हँसे बिना न रह सके। अंत में सबने यही निश्चय किया कि इससे बढ़कर परम मूर्ख और कहाँ मिलेगा। अगर किसी तरह विद्योत्तमा का विवाह इससे हो जाय तो बेचारी सारी जिंदगी पछताएगी।
उन सभी ने कालिदास को बड़े प्यार से नीचे बुलाया और कहा कि अगर तुम हमारी बात मानोगे तो तुम्हारी शादी एक बहुत सुन्दर राजकुमारी से करा देंगे। थोड़ी न-नुकर करने के बाद कालिदास उनकी मीठी-मीठी बातों में फंस गये और अपनी हामी भर दी। उन्होंने कालिदास को वस्त्र और आभूषण से सजाया और राजमहल ले आये।
आगे पढिये इस कहानी का अगला भाग – Hindi Story of Kalidasa: कैसे बना एक जडमूर्ख महाकवि कालिदास
– बेंजामिन डिज़रायली
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