Last Updated on August 27, 2018 by Jivansutra

 

Motivational Hindi Story on Understanding of Birbal

 

“प्रत्येक व्यक्ति हर दिन कम से कम पाँच मिनट तक मूर्ख होता है, बुद्धिमानी उस सीमा का अतिक्रमण न करने में है।”
– एल्बर्ट हब्बर्ड

 

इस शानदार कहानी का पिछला भाग आप Funny Hindi Story of Akbar and Birbal: बीरबल की खिचड़ी में पढ़ ही चुके हैं। अब प्रस्तुत है अगला भाग –

इधर बीरबल आज दरबार न जाकर घर में ही ठहरे रहे। उन्होंने बांस के दो लम्बे टुकड़े लिये और उन्हें जमीन में गाड दिया। फिर एक हंडिया में थोड़े चावल डालकर उन बांसों से लटका दी तथा उसके नीचे कुछ फूस और लकड़ी रखकर आग लगा दी। इधर नियत समय पर दरबार न पहुँचने पर बीरबल की खोजबीन शुरू हुई। उन्हें बुलाने के लिये एक दूत उनके घर पर भेजा गया।

घर जाकर उसे मालूम हुआ कि बीरबल तो आज सुबह से ही आँगन में आग जलाकर बैठे हैं। वह सैनिक बीरबल के पास आया और उनसे दरबार चलने को कहा। बीरबल ने जवाब दिया, “देखो भाई, जैसे ही मेरी खिचड़ी बन जाएगी, मै तुरंत दरबार आ जाउँगा।” उस सैनिक ने दरबार में सारा वाकया वैसे ही सुना दिया जैसा उसने देखा था।

सभी लोग बीरबल की खिचड़ी बनने की प्रतीक्षा करने लगे। पर जब अगला एक पहर बीतने पर भी बीरबल दरबार नहीं पहुँचे, तो बादशाह ने एक दरबारी को ही बीरबल को बुलाने भेज दिया। उस दरबारी ने बीरबल को बादशाह का हुक्म सुनाया, पर बीरबल ने उससे भी यही कहा कि जब तक उसकी खिचड़ी तैयार नहीं हो जाती तब तक वह दरबार आने में असमर्थ है।

वह दरबारी भी वापस सभा में लौट आया। उसकी बात सुनकर बादशाह सहित सभी दरबारी हक्के-बक्के रह गये, पर वे इंतजार करने के सिवा और कर भी क्या सकते थे? सब फिर से बीरबल के आने का इंतजार करने लगे। आज राजदरबार में कोई काम नहीं हो पाया था। फरियादियों की लम्बी क़तार लगी हुई थी। सुबह से शाम हो गयी थी।

पर न तो बीरबल की खिचड़ी ही बनकर तैयार हुई और न ही वे दरबार पहुँचे। बीरबल के इस रवैये से बादशाह का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया। उसने खुद ही बीरबल की इस अजीब खिचड़ी को देखने का निश्चय किया और वह सैनिकों और दरबारियों को अपने साथ लेकर बीरबल के घर जा पहुँचा। वहाँ का नजारा देखकर तो बादशाह बिल्कुल सन्न रह गया।

अजीब मंजर था। बांस की दो बल्लियों के सहारे एक हंडिया बहुत ऊंचाई पर लटक रही थी और उसके बहुत नीचे थोड़ी सी आग जल रही थी।सामने ही बीरबल दोनों हाथों से सिर को पकडे बैठा था। अकबर ने बीरबल को फटकारते हुए पूछा, “यह क्या हो रहा है बीरबल?” बीरबल ने जवाब दिया – “हुजूर! मै खिचड़ी बना रहा हूँ। अकबर को उसकी बेढंगी बात पर गुस्सा आ गया।

उसने आँखे तरेरते हुए कहा, “पागल हो गया है क्या मूर्ख? आसमान में हंडिया टांगकर, जमीन पर घास सुलगाने से भी कहीं खिचड़ी पक सकती है। इस तरह तो सौ साल में भी खिचड़ी तैयार नहीं होगी। बीरबल ने शांत भाव से उत्तर दिया, “हुजूर! जब एक कोस पर रखे दीपक की गर्मी से पूरी रात सर्द पानी में रहा जा सकता है, तो मेरी खिचड़ी क्यों नहीं पक सकती?

बादशाह बीरबल का इशारा समझ गया और उसने बीरबल से अपने गलत निर्णय के लिये माफ़ी माँगी। उसने उसी वक्त दो सिपाही भेजकर उस ब्राह्मण को दरबार में बुलवाया और उसे इनाम देकर विदा किया। वह गरीब ब्राह्मण बीरबल को दुआएँ देता चला गया।

इस तरह बीरबल ने अपनी हाजिरजवाबी और होशियारी से न केवल उस ब्राह्मण की विपत्ति दूर की, बल्कि उन ईर्ष्यालु दरबारियों को भी मजा चखा दिया और बादशाह अकबर की नजरो में अपनी श्रेष्ठता फिर से सिद्ध कर दी।

“बुद्धिमान बनने की कला वह जानने की कला है कि किसे नजरंदाज करना है।”
– विलियम जेम्स

 

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