Last Updated on August 27, 2018 by Jivansutra

 

Best Hindi Story on Weird Punishment

 

“जब तक लोगों का बड़ा समूह एक दूसरे की भलाई के प्रति जिम्मेदारी की भावना से युक्त नहीं होगा, तब तक सामाजिक न्याय कभी भी हासिल नहीं हो सकेगा।”
– हेलेन केलर

 

इस शानदार और प्रेरक कहानी का पिछला भाग आप Hindi Story of Lord Rama: जब भगवान राम ने दिया एक अनोखा दंड में पढ़ ही चुके हैं। अब प्रस्तुत है अगला भाग –

जब उससे उसका अपराध कहा गया तो वह ब्राह्मण बोला, “महाराज! यह श्वान सही कह रहा है। मै उस समय बहुत भूखा था। जैसे ही मै भोजन करने बैठा यह कुत्ता मेरे सामने आकर बैठ गया। मैंने इससे हटने को कहा परन्तु इसने वहाँ से हटना स्वीकार नहीं किया। तब मुझे क्रोध आ गया और मैंने डंडे से प्रहार करके इसकी टांग तोड़ डाली। अवश्य ही मुझसे अपराध हुआ है महाराज।

इसलिये आप मुझे जो भी दंड देंगे उसे मै स्वीकार करूँगा। महाराज श्रीराम ने सभी सभासदों से उस ब्राह्मण को दिये जाने वाले दंड के स्वरुप पर चर्चा की। गहन विचार विमर्श के पश्चात उन्होंने उस ब्राह्मण को कैद में डालने का आदेश दे दिया। तभी कुत्ता बोला, “महाराज! आपने इस ब्राह्मण को उचित ही दंड दिया है, परन्तु मेरी आपसे विनती है कि आप इसे कालिंजर मठ का मठाधीश बना दें।

श्वान का यह विचित्र कथन सुनकर सब दरबारी सन्न रह गये। कोई पीड़ित व्यक्ति अपने अपराधी के प्रति ऐसी दयालुता भी दिखा सकता है, इस पर उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था, क्योंकि मठाधीश होने पर तो उस ब्राह्मण के सभी कष्टों का अंत हो जाता। उसे बैठे-बिठाये, अनायास ही भोजन, शय्या और उच्च पद का सुख भोगने को मिल जाता।

भगवान श्रीराम ने उस श्वान से उसकी इस विचित्र माँग का कारण पूछा। पूछने पर उस कुत्ते ने जो उत्तर दिया वह बड़ा मर्मस्पर्शी था। उस श्वान ने कहा, “महाराज! मै भी पूर्वजन्म में कालिंजर का मठाधीश था। मुझे वहाँ प्रतिदिन, एक से बढ़कर एक, नये-नये पकवान खाने को मिलते थे।अनेकों सेवक मेरी आज्ञा का पालन करने को तैयार रहते थे।

मै रोज पूजा-पाठ करता था, और दूसरे नियमों का भी पालन करता था, फिर भी मुझे इस श्वान योनि में जन्म लेना पड़ा, तो इसका कारण केवल यह है कि मै देवताओं को अर्पित धन और भोग को स्वयं के लिये ही प्रयोग करता था। उसे मै न किसी भिक्षुक को देता था और न ही किसी असहाय स्त्री और बालक को ही।

स्वयं को बड़ा विद्वान और पंडित मानकर दूसरों पर रौब जमाता था और अपनी सेवा करवाता था। जो भी व्यक्ति देवताओं को अर्पित किये द्रव्य का अकेले ही उपभोग करता है, वह अवश्य ही नरक का अधिकारी होता है। यह ब्राह्मण भी क्रोधी, उद्दंड और हिंसक है, इसलिये मै चाहता हूँ कि इसे भरपूर दंड मिले। कुत्ते की इच्छानुसार भगवान् श्रीराम ने उस ब्राह्मण को कालिंजर मठ का महंत बना दिया।

अपनी वस्तु दूसरों के साथ बांटकर खाने से न केवल आपस में प्रेम ही बढ़ता है, बल्कि लोगों का सम्मान और यश भी प्राप्त होता है। लेकिन इस लौकिक उपलब्धि से भी कहीं अधिक महत्त्वपूर्ण है, संस्कार रूप में अर्जित की गयी वह सत्प्रवृत्ति जो न केवल एक सुनहरे भविष्य का निर्माण करती है, बल्कि हमें पतन के गर्त में गिरने से भी बचाती है।

“मै उसे ही धार्मिक मानता हूँ जो दूसरों के कष्ट को समझता है।”
– महात्मा गाँधी

 

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