Last Updated on June 2, 2019 by Jivansutra

 

Heart Touching Story in Hindi on Humanity

 

यह घटना बरसों पुरानी है, पर बिल्कुल सत्य है। सन 1936 की बात है। एक अमेरिकन महिला, जापान की राजधानी टोकियो की झुलसा देने वाली गर्मी से निजात पाने के लिए, जापान के उत्तर में समंदर किनारे स्थित एक स्वास्थ्यप्रद छोटी सी बस्ती में अपनी सात साल की बेटी के साथ रह रही थी।

Heart Touching Story in Hindi: सबसे नजदीक का रेलवे स्टेशन, सेनडाई वहां से बीस मील दूर था और जिस पहाड़ी पर स्थित बंगले में यह रहती थी, वहां से पक्की सड़क भी आधा मील दूर थी। उस जगह न तो कोई डॉक्टर था और दवाइयाँ भी सेनडाई कस्बे में ही मिल सकती थीं। एक दिन अचानक ही उसकी छोटी बच्ची के मुंह में छाले हो गये और साथ-साथ बुखार भी चढ़ गया।

उस स्त्री ने टोकियो स्थित विशाल अमेरिकन अस्पताल सेंट लूक को तार के जरिये बच्ची की दशा के बारे में बताया। वहां से परामर्श दिया गया कि अमुक औषधि के 40 प्रतिशत घोल का मुँह के छालों पर प्रयोग करो। बच्ची की माँ कार से जाकर सेनडाई से दवा बनवा लाई। लेकिन दवा को केवल एक बार लगाने से ही बच्ची का मुँह जल गया और वह चीख मारकर रोने लगी।

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माँ समझ गयी कि वास्तव में उससे कोई बड़ी भूल हो गयी है। थोड़ी ही देर में अस्पताल से तार आया कि औषधि के घोल में भूल से 4 प्रतिशत के स्थान पर 40 प्रतिशत लिखा गया, और इसके लिए वे क्षमाप्रार्थी हैं। इधर मध्य रात्रि तक बच्ची का कष्ट असहनीय हो गया। चूँकि इतनी रात गये टोकियो जाने के लिये कोई रेलगाड़ी नहीं थी, इसलिये अगले दिन की पैसेंजर ट्रेन से जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।

किसी तरह से वह दुखदायी रात कटी, लेकिन बच्ची का सारा मुँह सूज गया था और उस पर काले-काले धब्बे पड़ गये थे। इसके अलावा भीषण ज्वर से वह रह-रहकर बेहोश हो रही थी। अपनी बेटी को टैक्सी तक पहुंचाने के लिए वह बेचारी समुद्रतट पर मछुआरों के पास गयी। यह सुनते ही कि बच्ची बीमार है, मछुआरों ने अपनी नावें समुद्र से निकाल लीं और चार मछुआरे उस स्त्री के घर तक गये।

माँ का विचार था कि बच्ची को बाँस की कुर्सी पर बिठाकर उठाया जाय, लेकिन मछुआरों ने कहा कि इससे बच्ची को कष्ट होगा और उन्होंने बच्ची की खाट के चारों पायों को रस्सों से बाँधकर, रस्सों को अपने गले से लपेट लिया और हाथों से रस्सों को पकड़कर धान के खेतों की मुंडेरी पर से चलकर बड़े आराम से टैक्सी की सीट पर बच्ची को लिटा दिया और चारपाई लेकर लौट गये।

 

Real Heart Touching Story in Hindi

वापस आने पर जब उस महिला ने उन मछुआरों को उनकी सेवा के लिए ईनाम देना चाहा, तो उन्होंने यह कहकर इनकार कर दिया कि “बच्ची बहुत बीमार थी, और उसे ले जाना उनका कर्तव्य था।” उस पैसेंजर गाड़ी में केवल तीसरी श्रेणी के डिब्बे थे और भीड़ भी बहुत थी। उस महिला ने रेल के गार्ड से कहा कि ‘बच्ची बहुत बीमार है’ और वह छः सीटों का किराया दे देगी, यदि छः सीटों के गद्दे ब्रेक में बिछा दें।

जिस पर बच्ची को लिटाया जा सके और बच्ची के सिर और मुँह पर बर्फ रख सकें। उस माँ की प्रार्थना सुनकर गार्ड कहीं गया और थोड़ी ही देर बाद कुछ लोगों के साथ वापस लौटा। उन्होंने बच्ची को स्ट्रेचर पर लिटा दिया और उसे एक भव्य सैलून के दरवाजे पर ले गये। वहाँ जापान के उस समय के गृहमंत्री, कौनेसू-के-उसिया के सचिव ने उस महिला का स्वागत किया।

उन्होंने कहा – “गृहमंत्री को यह जानकर दुःख हुआ है कि आपकी बेटी बहुत बीमार है। उन्होंने कहा है कि आप उनके शयनकक्ष को स्वीकार करें। महिला ने कहा कि “हम मंत्रीजी के शयनागार का प्रयोग करके उन्हें कैसे कष्ट दे सकते हैं?” तभी गृहमंत्री महोदय स्वयं वहां आ गये और कहने लगे – “आपकी बीमार बच्ची को आराम की सख्त जरुरत है। कृपया इससे इंकार न करें और यह पुनीत कार्य करने दें।”

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मंत्रीजी के आदेशानुसार बच्ची को एक सुन्दर बिस्तर पर लिटा दिया गया, जिसके ऊपर पंखा चल रहा था। धूल और मक्खियों से बचाव के लिए बच्ची के चेहरे पर एक स्वच्छ और उज्जवल वस्त्र ओढा दिया गया। स्वच्छ, धुले हुए तौलिये ठंडी पट्टी के रूप में इस्तेमाल करने के लिए उसके पास रख दिए गये।

अगले स्टेशन पर गृहमंत्री के आदेशानुसार कई आइसबैग, एक बर्फ का तकिया तथा दो बर्फ की सिल्ली गाड़ी में आ गयी। इस गाडी के साथ भोजन का डिब्बा नहीं था। यात्रीगण या तो घर से भोजन लेकर चलते या फिर रास्ते में खरीदकर खाते। लेकिन उस माँ को भोजन की सुध कहाँ थी, वह तो जल्दी से जल्दी अस्पताल पहुंचना चाहती थी।

लेकिन थोड़ी ही देर में बच्ची के मुँह में डालने के लिए यवजल (बार्ले वाटर) और उसकी माँ के लिए स्वादिष्ट भोजन और फल आ गये। पूरी दोपहर जब गाडी तपते मैदाओं से गुजर रही थी, एक कुली दरवाजे पर बैठकर बर्फ तोड़ता और जहाँ भी गाड़ी रूकती, बर्फ की एक नयी सिल्ली आ जाती।

जापानी मंत्री की अनोखी अतिथि सेवा

बाहर की तपिश को रोकने और बुखार की तीव्रता कम करने के लिए बच्ची के माथे, गर्दन और कंधे बर्फ की ठंडी पट्टियों से ढके रहे। बाद में सेंट लूक अस्पताल के चिकित्सक ने भी कहा कि यदि बर्फ और शीतल पेय से बच्ची का उपचार न किया जाता, तो तेज ज्वर और मुख की सडन से बच्ची के प्राण संकट में पड सकते थे।

अंत में जब गाडी टोकियो के उपनगर में पहुंची, तो एम्बुलेंस भी स्टेशन पर ही तैयार मिली। उस अनमोल सहायता के लिए जब वह महिला मंत्रीजी का धन्यवाद करने लगी, तो उन्होंने सकुचते हुए कहा, “देवीजी ऐसा मत कहिये, मै जो थोड़ी सी सेवा कर सका, यह तो मेरा कर्तव्य था; क्योंकि आप मेरे देश की अतिथि थी।”

उनके शब्द सुनकर वह महिला भाव-विभोर हो गयी और उसकी आँखों से ख़ुशी के आँसू निकल पड़े। अगर आपको भी हिंदी की यह Heart Touching Story अच्छी लगी हो तो इसे जरुर शेयर करें।

साभार – श्री निरंजनदास धीर

“आप आज जी नहीं पाये हैं, यदि आपने किसी ऐसे के लिये कुछ नहीं किया है, जो आपको बदले में कभी कुछ नहीं दे सकता है।”
– जॉन बुनोयन
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